Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

खुदा तेरी बागे-जहाँ में बहती यह कैसी हवा है

 


खुदा तेरी बागे-जहाँ1 में बहती यह कैसी हवा है

इसमें न तेरी दुआ, न कोई दवा है


तपे-हिज्रा2 की गर्मी में झुलसता है प्राण- पक्षी कोई

गुल ऐसा नहीं, जो अपने पहलू में खार3नहीं रखा है


इन्सां तेरे एक इशारे पर परवाने की तरह अर्श4 से

जमीं पर उतर आया, क्या यही उसकी खता है


वफ़ा के बदले जफ़ा किया तूने खाक में मिल

जाने को साहिल कहकर, तुझको मिला क्या है


दिले-जार5 रश्के-मसीहा6 क्यों बना, क्या इन्सानों

की तरह होती तेरी भी मजबूरी, जब कि तू खुदा है


1.दुनिया के बाग 2.ताप के साये 3.काँटा 4.आकाश

5. कष्टदायक. 6.मसीहा को लज्जित करनेवाला

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ