Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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किसकी है यह आवाज

 

किसकी है यह आवाज



भावना के निस्सीम गगन  से

आ  रही  उस  आवाज  को सुनकर

मैंचौंकउठा  ,  मुझेलगा

बरसों  पहले  जिसने मेरे रेगिस्तान

हृदय  में, पाटल –कुसुम खिलाया था

कहीं वहीं तो नहीं,प्राची के आँगन से

उस  हृदय  को , तप्त  बालुका  में 

गिरा  देख ,  मचा रही  है  शोर


मुझसे कह रही हैप्राणधन, क्या

मेरा अश्रु सलिल अभिषेकभी

तुम्हारे तप्त हृदय को शीतल कर न सका

जो तुम नंदन विपिन   से  टूटकर

पतझड़  के पत्तों सा बिखरे हुये हो भू पर

तुम्हारी वाणी में रहा नहीं चाव भरा हिलोर


क्या  तुम  ऐसा सोच रहे हो, कि

एक दिन तुम्हारी शिथिल आहों से 

खींचकर यह   दुनिया , तुम्हारे

प्राणों  के  दिव्य  कथा को सुनने

तुम्हारे पास   आयेगी  ,  और

अपने  गले  से  लगाकर  तुमको

ले  जायगी  नये  जीवन की ओर



तो  यह  भ्रम  है, तुम्हारा  नित  इस  जग से

परिचित होकर भी अपरिचित हो तुम

तुम नहीं जानते,पवन के स्तर में हैं लहरे जितनी

प्राणी  की  चित्कारें  भरी  हुईं  हैं  उसमें उतनी

इसलिए  अपने  जीवन  के  सिकता  सागर को

अश्रुजल  से  भरना छोड़ो,और देखो बाहर आकर 

कैसे घिर  आयी है घटा घनघोर

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