क्षमा बड़ेन को चाहिए
कहते हैं क्षमा मनुष्य को बड़ा बनाता है, इसलिए दूसरों की गलतियों को क्षमा करने , हमें सीखना चाहिए । लेकिन कब तक, एक ही गलती अगर कोई बार – बार आपके साथ दोहराता है, क्या तब भी ; कदापि नहीं । क्षमा एक बार, दो बार, तीन बार की जा सकती है, बार – बार नहीं । ऐसे भी क्षमा करने से पहले, यह देखना भी आवश्यक होगा, क्या यह गलती क्षमा लायक है । मान लीजिए, कोई व्यक्ति किसी अबोध बच्चे की गला रेतकर आपके पास आये और आपसे क्षमा याचना करे, क्या तब भी आप उसे क्षमा कर देंगे ? मैं तो कहूँगी, नहीं,कभी नहीं । अगर आप क्षमा देते हैं या क्षमा देने की तरफ़दारी करते हैं, तो यहाँ पर आप भी खूनी हैं । आपको भी वही सजा मिलनी चाहिए ,जो सजा कत्ल करने वाले के लिए मुकर्रर की जायेगी । क्योंकि कहा गया है , अपराधी से बड़ा , अपराध को पनपने देने में जो साथ देता है, वो होता है । हमें बार – बार दान की आड़ में , अपराध को पनपने नहीं देना चाहिए ; बल्कि अपराध नहीं हो, कम हो , इस पर ध्यान देना चाहिए ।
हम जानते हैं छोटी – छोटी गलतियाँ , बढ़ते – बढते बड़ा होता है , एक बार में कोई खून करना नहीं सीखता । इसके पहले चोरी , झूठ, गाली-गलौज , मार-पीट आदि जैसे अपराध में लिपटता है और सजा नहीं मिलने के कारण, उसके मनसूबे बढ़ते चले जाते हैं । बाद धीरे –धीरे वह बड़ा अपराधी, खूनी बन जाता है । मैं समझती हूँ, यहाँ तकपहुँचने में समाज बहुत हद तक उसका साथ देता है । चाहे वह माँ – बाप के रूप में हो, या दोस्त – बन्धु के रूप में ।
मैं आपको अपनी आँखों देखी एक कहानी बता रही हूँ । हमारे पड़ोस में एक मास्टर जी रहते हैं । उनके दो बेटे हैं । बड़ा बेटा जितना शांत- शीतल है, छोटा उतना ही उग्र और गरम मियाज का । बात – बात पर अपने बड़े भाई के साथ झगड़ना, चिल्लाना उसकी रोज की दिनचर्या बन चुकी थी । एक दिन तो हद ही हो गई । जब उसने अपने बड़े भाई पर हाथ उठा दिया । जब तक घर के लोग कुछ समझ पाते, उसने कई लात उसे जमा दिये । मास्टर जी के घर पहुँचने पर जब उनकी पत्नी, गीता ने उन्हें बताया कि किस प्रकार छोटू आज बड़े को पीटा है ,तो वे हक्के-बक्के रह गये । कहने लगे, आज तक लड़ाई, गाली- गलौज तक ही सीमित था, पर अब तो सभ्यता की रेखाओं को पार कर गया । मार – पीट पर उतर आया, यह ठीक नहीं है । उन्हें बुलाओ, वे लोग कहाँ हैं ? दोनों आये । पिता ने कहा, “छोटू , ये मैं क्या सुन रहा हूँ । तुमने बड़े भाई को पीटा है ।’ उसने रोते हुए कहा,’ मुझसे गलती हो गई ; आइंदा ऐसा नहीं होगा ।’ पिता आखिर पिता थे । बच्चों की आँखों से बहते आँसू में वे बह गये और डाँटते हुए कहे,’ ठीक है ,मगर इसके बाद से अगर तुमने ऐसा किया, तो सजा मिलेगी । अभी भैया से माफ़ी माँग लो ।’उसने पिता को खुश करने के लिए दोनों हाथ जोड़कर क्षमा माँगते हुए कहा,’ मुझे माफ़ कर दो, भैया’ ; और वहाँ से चलता बना । दो –चार दिन भी नहीं गुजरे कि फ़िर एक दिन उसने बड़े भाई को गाली – गलौज करना शुरू कर दिया । संयोगवश मास्टर साहब उस वक्त स्कूल से घर वापस लौट रहे थे । अपनी आँखों से यह सब होते देख, वे समझ गये , छोटू अब सुधरने से रहा । फ़िर भी सुधारने का प्रयास तो करना ही होगा । उन्होंने छोटू को अपने पास बुलाया । कहा,’ आज जो कुछ मैंने अपनी आँखों से देखा, वह क्षमा योग्य नहीं है । फ़िर भी मैं तुमको मार –पीट नहीं रहा, बल्कि तुमको मैं एक बेलून दे रहा हूँ । तुम चौराहे पर ले जाकर , इसका मुँह खोल दो । जब बेलून हवा से खाली हो जाय, तब इसे मेरे पास ले आना ।’ छोटू ने वैसा ही किया । चौराहे पर जाकर बेलून का मुँह खोल दिया । जब सब हवा निकल गई, तब उसे पिता के पास ले आया । पिता ने कहा,’ यह तो हुआ । अब तुम फ़िर से चौराहे पर जाओ और उसी हवा को बेलून में भर लाओ, जिसे तुम अभी- अभी छोड़ आये हो । खुश होकर छोटू दौड़ते हुए चौराहे पर गया । लेकिन उस हवा को भरना तो दूर, कहीं दिखाई तक नहीं पड़ा । छोटू उदास होकर पिता के पास लौट आया और सर झुकाकर खड़ा हो गया । पिता ने पूछा, ’हवा भर ले आये हो ?’ छोटू चुप था । बड़ी मुश्किल से मुँह खोलते हुए कहा,’जिस हवा को मैंने छोड़ा, अब वह वहाँ दिखाई नहीं पड़ता है ।’ मास्टर जी ने कहा,’ जिस तरह तुम छोड़ी हुई हवा को वापस नहीं ला सके, उसी तरह जो गाली या बुरा वचन मुँह से निकालते हो, उसे तुम क्षमा माँगकर वापस नहीं लौटा सकते । जो एक बार निकल गई, सो निकल गई । गलतियाँ ,गलतियाँ होती हैं, चाहे वे छोटी हों या बड़ी । यह एक अपराध है, जिसे क्षमा माँगकर तुम अपने अपराध से मुक्त नहीं हो सकते । इसके लिए दंड ही तुमको मुक्त कर सकता है ।’ तब छोटू को समझ में आया कि क्षमा माँग लेने से गलतियाँ सुधर नहीं जातीं ; न ही हम उसे वापस लौटाकर ले सकते । इसलिए गलतियाँ न हों, हमें इसकी कोशिश करनी चाहिए, न कि क्षमा की ।
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