Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क्या दूँ, क्या है मेरे पास

 



मेरी  अनिद्र आँखों  में  तुम

अपनी आँखें डालकर  देखो

और  बताओ , क्या है मेरे पास

दिन की उदासी,रात का जलाहार

आँसुओं  में बहे, असफ़ल जीवन

को बचाने का प्रयास, इन सबके

सिवा  और  क्या  है  मेरे पास


कौन  फ़ूल  बचा रह गया, जिसे मैं

अपने  जीवन यग्य के हवन कुंड में

डालने  से  चूक गई, रही नहीं याद

जिसके लिए तुम पल-पल सुलग रहे

कह  रहे, मातृ  सुख  का  होता है

क्या  स्वाद, मुझे  नहीं कुछ ग्यात


दुख  होता  है, सोचती  हूँ जब, धरती मातृ 

पद  को  पाकर  कितना  पवित्र  कहलाती

एक  मैं  हूँ  जो  माँ  बनकर  भी दुनिया 

में उपेक्षित हूँ, मेरा न   कोई  आस

मैंने जिसे अपनाप्राण   रस  पिला-

पिलाकर  पाला – पोषा , बड़ा  किया , वही 

आजकह  रहा  पुत्र– प्राप्ति  में ईश्वर की 

कृपा  होती ,इसमें माँ  का  क्या  है  हाथ

लगता, अहंता  का ऐश्वर्य मिला है तुम को

आत्म वंचना का,पीये हुए हो मादक उन्माद

वरना करते नहीं तुम ऐसी बात



इस  जग  को  देखो, जो  तुम्हारी आँखों

को दर्पण सा दीख रहा,बना नहीं अनायास

इसे  सुख  सुंदर  बनाने, नित नर्त्तन में

निरत प्रकृति  ,  कांतिसिंधुसंग

घुल - मिलकर , करती   रहतीप्रयास

तब  जाकर  यह  दुनिया, कुंज भवन सी

दीखती,  जहाँ  पथिक करतेआराम

मिटाते जीवनसुख का अवसाद


जानते हो,एक नारी जिस दिन से गर्भ धारण 

करती,उसी रोज से निराकार अगोचर के आगे

अपना  आँचल फ़ैलाकर, विनती करती,कहती

हे  ईश्वर ! एक  बार  तुम मेरे भ्रूण-पिंड को 

छूदो, जिससे, तुम्हारी  महिमा से मेरा पुत्र 

दुनियामें आकर सुखी- सम्पन्न  रहे

छू न  सके  उसे ,  रोग, शोक ,  संताप


तुमने कैसे सोच लिया,तुम्हारे हिस्से का उल्लास

लिये , भागी  जा  रही  मैं  क्षितिज  की  ओर

जिससे  रूक सकता है तुम्हारे जीवन का उत्साह

अरे , इसतिमिरग्रस्त होती   जा  रही

अंधकार  की  प्रतिमा  पर  इतना करो विश्वास

और  देखो , क्षितिजमें  संध्या  तमसको

कैसे जीतरही , जहाँ ,    रजतदिवस

स्वर्ण प्राप्त तारा -  शशि  का   है वास

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