क्या कयामत है, सभी हमीं को बुरा कहते हैं
हमारी नेकी को छोड़, बदी की चर्चा करते हैं
प्रलय के दिन भी, वे हमारे विरूद्ध खड़े रहे
देखना है, आगे वे, और क्या तमाशा करते हैं
मिटती नहीं, मुहब्बत के पाँव से जिबह-साई1का
नक्श2, हम जिसे पत्थर की लकीर कहा करते हैं
न किसी की पूछताछ, न आवभगत है,बज्म3 में
आजकल लोग, कैसा अहतमाम4 किया करते हैं
बहरे-गम5 से पार उतारेगी, कश्ती-ए-मय हमको
यही सोचकर, हम रोज मयखाने जाया करते हैं
शबे-हिज्र6जब आती है, लहू को पानी करने ,तब
गुलशने–दहर में हम सराये-मातम7को ढूँढ़ा करते हैं
1. माथा रगड़ना 2. निशान 3. महफ़िल 4. प्रबंध
5.गम का सागर 6.विरह की रात 7.रोने की जगह
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