Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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महासेतु है नारी

 

महासेतु है नारी



कहते  हैंजब  से यह दुनिया बनी

तब  से  सुरभि  संचय  कोश  सा

तीनो  कालों  को  खुद  में  समेटे

प्रेरणाप्रीति   करुणा की अदृश्य

उद्गम-स्थली  कही जानेवाली नारी

कवि  के  तमसा  वन के कूलों में

वनफ़ूलों में,नभ-दीपों में हँसती आई


मगर नर स्वेच्छा  तम  को  भेदकर

शरद की  धवल   ज्योत्सनासी

धरा   मंच  पर  कभी  निखर    पाई

शीतल  मस्तकसिर  नीचा  करसमग्र--

जीवनविश्वनद  में  सुंदरसरस हिलोर

उठाने  कोकनद  की धारासी बहती रही

जमीं हिली,पहाड़ हिला,मगर यह ध्रुव मूर्ति

जगकोलाहल   के  बीच  रहकर  भी

मूकता  की  अकम्प  रेखा सी स्थिर रही


जब देखा धूसर  संध्या  को

क्षितिज  से  उतर  कर धरा पर

कालिमा बरसाने    रही

प्रलयभीत  मनुज  तन  रक्षा में 

ज्वलनशील अंतर लिये

शून्य प्रांत की ओर भागा जा रहा




तब यह सोचकर,कि विश्व व्यवधान

को पाकर   निर्झर  तजता  नहीं

अपने  गतिप्रवाह को कभीविश्व

ज्वाला में मोम सीगल बहती रही


औरजाते –  जाते  निज  मुख  को

विस्मृति की गोदमेंरखकर

कह गई जग  के  विस्तीर्ण  सिंधु

के  बीच  एकांत  दीप-सानारी का उर

केवल नर जीवन की चेतना का मधुमय

स्रोत   नहींहै बल्कि  धरती  और

आसमां के बीच  महासेतु  है  नारी

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