Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माँ तुम मेरे पीछे-पीछे आना

 

माँ तुम मेरे पीछे-पीछे आना


माँ, तुम मेरे पीछे-पीछे धीरे-धीरे आना, गिर जाओगी वरना । अब तुम्हारे हाथ-पाँव निबल हो चुके हैं; दूर की चीजें तुमको दिखाई नहीं पड़तीं । रास्ते बड़े ही ऊबड़- खाबड़ हैं । इसलिए माँ, तुम मेरे पीछे-पीछे, धीरे-धीरे आना । न जाने यह बात, अभय ने अपनी बूढ़ी माँ से कितनी बार कहा होगा । कहता भी क्यों नहीं; माँ को खुद से ज्यादा प्यार जो करता था । सोते –जागते वश माँ की चिंता करता रहता था । सोचता था , एक औरत के लिए पति के बिना जीवन संभालना ही दूभर होता है ; उस पर बच्चों का भरण-पोषण । सचमुच मेरी माँ देवी है, जो पिता के न रहने का अभाव कभी मुझे खलने नहीं दी । रात-दिन दूसरों के घर का चौका- बरतन कर मेरी पढ़ाई-लिखाई, मेरी सुख- सुविधा को बनाये रखी, लोगों की कितनी दुतकारें, कितनी गालियाँ सही । कभी उफ़ तक नहीं की, पर नियति का मन इतने से भी संतुष्ट नहीं हुआ तो मुझे बीमार रखने लगी । माँ मुझे बिस्तर पर सोया देख,दूसरे कमरे में जाकर भगवान के आगे फ़ूट – फ़ूट कर रोती थी । कहती थी,’ भगवान ! मेरे पास पैसे नहीं हैं, मैं अपने बेटे का दवा- दारू कराऊँ, तो कैसे कराऊँ । मेरा बेटा बहुत बीमार है ,बड़े कष्ट में है; उसे अच्छा कर दो, उसकी पीड़ा हर लो । ईश्वर निर्धन की प्रार्थना नहीं सुनता, शायद माँ को मालूम नहीं था । दिनोंदिनमेरी तबियत और बिगड़ती गई । आशा से निराश होकर माँ ने मकान का एक हिस्सा बेच दिया । सोची ,’ पैसे मिलेंगे , इलाज कराऊँगी, मेरा बेटा स्वस्थ हो जायगा । बाद ईश्वर ने चाहा तो ऐसा घर वह खुद खरीद लेगा ।’ माँ मुझे शहर के बड़े डाक्टर को दिखाने ले गई । डाक्टर ने जाँच-परताल के बाद कहा, मेरी एक किडनी खराब है , उसे निकालना होगा और हुआ भी वही । आज मैं एक किडनी पर जिंदा हूँ । मैं नहीं बता सकता, मुझे हँसता – खेलता देख, मेरी माँ कितनी खुश रहती है । सुबह-शाम माँ काली की आरती उतार कर , मेरे माथे से लगाती है । कहती है,’ एक किडनी ही सही, सुनती हूँ जीने के लिए दो किडनियों की जरूरत भी नहीं पड़ती । तुम स्वस्थ हो और मुझे क्या चाहिये ।’

माँ का अत्यधिक खुशी होना कभी- कभी मुझे डरा देता था । कारण मैं सुनता आया हूँ, ’ अति सर्वत्र वर्जयेत ’। फ़िर सोचता था, एक माँ अपने बेटे को स्वस्थ देखकर खुश है , तो इसमें बुराई क्या । लेकिन जिसका मुझे डर था, वही हुआ । एक दिन माँ बातें करते- करते बेहोश हो गई । मुझे समझ में नहीं आ रह था कि अचानक माँ को क्या हो गया । डाक्टर को बुलाया । डाक्टर ने जाँच- पड़ताल के बाद जो कुछ बताया; सुनकर मेरे होश उड़ गये । माँ की दोनों ही किडनियाँ खराब हो चुकी थीं । । मैंने डाक्टर से कहा,’ डाक्टर साहब ! मेरे पिता नहीं हैं, सिर्फ़ माँ है । अब अगर इसका भी साथ छूट गया, तो मैं जीऊँगा कैसे । आप तो धरती के भगवान हैं । आप मेरी माँ को बचा लीजिए ।’ डाक्टर ने कहा,; यह सब तो ठीक है, मगर किडनी बिना कोई कैसे जिंदा रह सकता । ऐसे भी अब तुम्हारी माँ काफ़ी बूढी हो चुकी है । इस अंतिम पड़ाव पर आपरेशन , मेरी समझ से ठीक नहीं । फ़िर भी अगर इन्हें कहीं से लाकर, एक किडनी लगा दिया जाय, तो कुछ दिन और अवश्य जीयेंगी । लेकिन किडनी आयेगा कहाँ से ? तुम तो स्वयं एक किडनी पर जिंदा हो ।’ अभय ने कहा,’ डाक्टर आप चिंता न करें । मेरी माँ बहुत अभागिनी है; इसने पति का प्यार नहीं देखा । मेरे जैसे अपाहिज संतान की माँ तो बनी, लेकिन संतान सुख इन्हें कभी नहीं मिला । जब कि मैं जिंदा हूँ । इसलिए डाक्टर ! मेरी एक प्रार्थना स्वीकर करो,’ मेरी माँ को मेरी किडनी निकालकर लगा दो ।’ सुनकर डाक्टर बोल पड़ा,’ क्या पागल–सी बातें करते हो । तुम्हारे पास एक ही किडनी है; उसे अगर मैं निकाल लूँ, तो तुम मर जायगा । इसलिए मैं ऐसा नहीं कर सकता ।; लेकिन अभय मानने वाला कहाँ था; डाक्टर का पैर पकड़कर बैठ गया । लाचार होकर, डाक्टर ने कहा ,; ठीक है, मान लो कि मैंने तुम्हारी किडनी तुम्हारी माँ को लगा दिया । वो स्वस्थ हो जायेंगी । लेकिन जब अपने बेटे को खोजेंगी, मुझसे पूछेंगी तब मैं उन्हें क्या जवाब दूँगा । किस प्रकार उन्हें बताऊँगा कि आपके बेटे की साँस छीनकर ,आपकी साँस मैंने दी है । नहीं- नहीं, मैं यह सब नहीं कर पाऊँगा ।’ अभय डाक्टर को टूटता देख , खुद का हिम्मत जुटाते हुए कहा,’ डाक्टर ! जब मेरी माँ मुझे खोजेगी, तो उसे यह खत दे देना । ’ डाक्टर ने पूछा,’ इस खत में ऐसा क्या है , जिससे एक माँ पुत्र वियोग भूल जाय । ’ अभय ने बताया,’ मैंने लिखा है, माँ ! मैं तुम्हारे बुढापे की लाठी हूँ । यही सोचकर तो तुमने मेरे लिए इतना कष्ट उठाया । तो आज मैं अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ । तुम्हारे चलने के लिए अपनी साँसों का सहारा दे रहा हूँ । माँ ! मैं तुम्हारा बेटा हूँ । तुम्हारी सुख- सुविधा का ख्याल रखना मेरा धर्म है और ऐसे भी माँ का संतान के जिस्म के हर हिस्से पर हक बनता है । मैं अभी जवान हूँ, दूर-दूर तक भाग- दौड़ कर सकता हूँ । हर जगह तुमसे पहले पहुँच सकता हूँ । इसलिए मैं आज तुमसे पहले जा रहा हूँ । वहाँ जाकर तुम्हारे लिए अनुकूल जगह की तलाश करूँगा । जो सुख धरती पर तुमको नहीं दे सका , तुमको वहाँ दूँगा । इसलिए माँ ! मैं तुमसे आगे जा रहा हूँ, तुम धीरे- धीरे मेरे पीछे-पीछे आना ।

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