Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरा प्रियतम आया है

 

मेरा प्रियतम आया है, बावन साल बाद


बैठों न अभी पास मेरे

थोड़ी दूर ही रहो खड़े

मेरा प्रिययम आया है

दूर देश से बावन साल बाद

कैसे कह दूँ कि अभी धीर धरो


शशि-सा सुंदर रूप है उसका

निर्मल शीतल है उसकी छाया

झंझा पथ पर चलता है वह

स्वर्ग का है सम्राट कहलाता

मेरी अंतर्भूमि को उर्वर करने वाला

वही तो है मेरे प्राणों का रखवाला


जब इन्तजार था आने का

तब तो प्रिय आये नहीं

अवांछित, उपेक्षित रहती थी खड़ी

आज बिना बुलाये आये हैं वो

कैसे कह दूँ कि हुजूर अभी नहीं


दीप शिखा सी जलती थी चेतना

इस मिट्टी के तन दीपक से ऊपर उठकर

लहराता था तुषार अग्नि बनकर

भेजा करती थी उसको प्रीति, मौन निमंत्रण लिखकर

आज कैसे कहूँ कि वह प्रेमीमन अब नहीं रहा

जिससे मिलने के लिए ललकता रहता था मन

वह आकर्षण अब दिल में नहीं रहा

 

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