नारी, तुम स्वयं प्रकृति हो
नभ-धरा को एक पाश में बाँधनेवाली
मृदु मलयानिल-सा शांत, शीतल नारी
मरु में भी सिंधु-सी तरंगित होती, लहराती
अजस्त्र वर्षा, स्नेह की यह रजनी
नारी माँ, बहन, बेटी, पत्नी बन जीती यहाँ
फिर अपनी पीड़ा कहाँ और आनंद कहाँ
पर स्वंय प्रकृति कही जानेवाली यह नारी
कितना विवश, लाचार है इस धरा पर
कौन बता सकता इसकी आपबीती
पति, पुत्र को मन के उच्च निलय में ले
जाकर, निरापद सुख देनेवाली यह देवी
इस जगत की कितनी यातनायें सहतीं
कोख में पल रहे अजन्मा पुत्र के लिए
कल्पना के ऊँचे शिखरों पर चढ़कर
परमदेव के आगे आँचल फैलाकर
रश्मि और ताराओं की आभा से कहती
तुम अपना अपरूप अमर ज्योति मेरे शोणित में
मिलाकर, मेरे कोख में पल रहे मेरे पुत्र के
हृदय प्राणों में समा दो, जिससे कि
मेरा भी पुत्र तुम-सा सुंदर प्रभावी हो
अन्यथा मैं प्रेममाया के बलशाली पंख पर चढ़कर
उस असीम गगन के महा उडुगन में जाऊँगी
और कहूँगी, तुमने कहा था, त्रिया कामिनी नहीं होती
बल्कि छाया है मेरे परम विभा की, मृत्ति-लोक की
तो फिर मेरी प्रार्थना अस्वीकार कैसे कर सकते
स्वपन-स्वपन से, हृदय-हृदय से मिलकर सुख पाता. है
तुम्हारी द्वाभा के वरदान अर्द्धस्फूटित कैसे रह सकते
इतिहास साक्षी है, कोई भी ऐसा युग नहीं बीता
जिसमें नारी ने यातनायें नहीं सहीं, भोगी नहीं पीड़ा
पर जब-जब नारी को कमजोर अबला समझा नर
तब-तब रामायण रची गई, महाभारत हुआ
फिर भी यह नारी कोलाहल के बीच रहकर भी
मूक अकम्प रेखा-सी, अचल शांत, शीतल बैठी रही
कभी अपनी अभिलाषाओं को मन की ज्वाला से व्यग्र नहीं किया
विनम्र हृदय यह त्रिया, सदा शांत, संयमी रही
अश्रुमुखी ईश्वर से सदा एक ही वरदान माँगती आई
प्रभु! मेरे पति और पुत्र का, कण भर भी अनिष्ट न होने देना
अगर कोई आपदा बाकी हो, उन दोनों के हिस्से में तो
मैं हूँ न, तुम सम्पूर्ण उसे मेरे नाम कर देना
क्योंकि मैं नारी हूँ, मैंने सीखा है दुख-पीड़ा से लड़ना
पर मेरे पुत्र और पति, शिशु समान कोमल हैं, संभव नहीं
उनके लिए इस जगती की पीड़ा का सामना करना
प्राचीन काल में ऋषि-मुनियें ने नारी को बहुत सम्मान दिया
तपसिद्धि भूपा का पर्याय बताकर, अपनी श्रद्धा प्रदान की
और बताया नारी कोई भोग की वस्तु नहीं, बल्कि
नर के एकाकी जीवन का भरोसेमंद अवलम्ब है नारी
नर के जीवन की नौका की तरणी है नारी
क्षमा, शांति, ममता और करुणा की देवी है नारी
जब भी नर का हाथ पकड़कर नीरवता अँधेरे में ले जाती
और कहती तुम मेरे हो, मेरी आँखों में आँखें डालकर देखो
तुरंत नारी क्षितिज के वेग भरी आँधी-सी उठ आती
तारिकाओं की अकथ कथा सुनाकर, निद्रा में ले जाती
जहाँ नर अपनेपन को पाकर, लक्ष्य, दिशा सब कुछ भुलाकर
कहता, नारी तुम अबला, कमजोर नहीं, एक प्रकृति हो तुम नारी
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