पैगम्बर मुहम्मद
कहते हैं, जब-जब मानव जाति अपने धर्म का हनन किया, तब-तब ईश्वर (अल्लाह) अपना वेष बदलकर, मनुज रूप में यहाँ आये और उसको निजात दिलाये । ये बात अलग है, कि हर बार लोगों ने उनको अलग-अलग नाम से जाना । कभी राम, कभी पैगम्बर मुहम्मद और कभी जेसस क्राइस्ट, के रूप में प्रकट हुए ; लेकिन सबों के जनम लेने का मकसद एक था ---- मानव जाति खुद सुखी-सम्पन्न रहे और अन्य जीव-जन्तुओं को भी स्वतंत्र जीने दे ।
पैगम्बर मुहम्मद का जन्म 570 ईसवी में, अरब के महाद्वीप में हुआ था । वे इस्लाम के सबसे महान नबी और आखिरी संदेशवाहक माने जाते हैं । उनके जनम के समय - काल में अरब का यह महाद्वीप सूना और वीरान था । लेकिन शीघ्र ही पैगम्बर मुहम्मद की सशक्त और महान आत्मा की बदौलत यहाँ आबादी भर गई और धीरे- धीरे एक नये राज्य के रूप में अवस्थित हो गई , जो अभी मरकस से वेस्ट इंडीज़ तक फ़ैली हुई है । उनका विचार , उनकी अमृतवाणी यूरोप और भारत पर भी खूब प्रभाव डाली ।
मुसलमान मानते हैं, कि पैगम्बर मुहम्मद को परम ग्यान की प्राप्ति 610 ई० के आस-पास मक्का की पहाड़ियों में ज़िब्राइल नाम के फ़रिश्ते से प्राप्त हुई । इस बात का जिक्र पवित्र कुरान के 96 वें सुरा के प्रारम्भिक पाँच पंक्तियों में मिलता है । इस संदेश के अनुसार, ईश्वर और अल्लाह, दोनों एक हैं , सिर्फ़ नाम अलग-अलग है । उनका संदेश था, झूठी प्रशंसा, गरीबों को हीन भावना से देखना, समाज के कमजोर तबके या किसी भी जीव पर जुल्म करन पाप है । बल्कि जो दूसरों के दुख-दर्द को बाँटता है, पूरी दुनिया को अपना सगहा समझता है, वह खुदा का सबसे अधिक प्रिय और नजदीक रहता है । उसको अपने जीवन-काल में , कभी-कभी बुरे दिन आते भी हैं तो, ईश्वर (अल्लाह) आकर शीघ्र उबार लेते हैं ।
पैगम्बर मुहम्मद ने कहा---’ हर इन्सान को अपने खुदा या ईश्वर की इबादत करनी चाहिये । उनकी इबादत की विधियाँ बड़ी ही सरल थीं । उनके अनुसार , नित-प्रतिदिन ईश्वर (अल्लाह) की प्रार्थना, सच के रास्ते चलना और गरीबों को खैरात बाँटना, चोरी नहीं करना आदि ऐसे कर्म करने वाले स्वर्ग की प्राप्ति करते हैं । उनके अनुसार , आस्तिकों को एक ऐसे समाज की स्थापना करनी चाहिये जिसमें अपने धर्मिक विश्वासों के चलते, लोग एक दूसरे से जुड़े रहें ।
जैसा कि कहा जाता है, अरब के लोग पहले मूर्ति पूजक थे । अलग-अलग कबीले के लोग भि्न्न-भिन्न देवी-देवताओं की पूजा करते थे, इसलिए समृद्ध समाज के बुद्ध वर्गों ने एकेश्वरवाद के सिद्धान्त को नहीं माना । उनका सोचना था कि, इससे उनकी सामाजिक हुकूमत खतरे में पड़ जायेगी । इसलिए ये लोग विरोध पर भी उतर आये ।
कुरान कहता है, इन्सान का जन्म अल्लाह की इबादत के लिए हुआ है अर्थात किसी भी आदमी को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिये, जो अल्लाह को नापसंद हो । जिस कार्य से अल्लाह खुश हो, वही करना चाहिये । इसके लिए इन्सान को ईमानदारी, न्याय और नेकनीयत रखनी चाहिये । पैगम्बर मुहम्मद ने कहा है, अगर कोई व्यक्ति अपने हिस्से से अपनी पत्नी को एक कौर भी खिलाता है, तो यह नेकी और भलाई का काम है । उनके अनुसार कोई व्यक्ति अपनी कामना और ख्वाहिश को पूरा करता है, तो इसका भी उसे पुण्य मिलेगा; बशर्तेकि, इसके लिए जो उन्होंने तरीका अपनाया, वह जायज हो ।
कहा जाता है, हज़रत मुहम्मद निरक्षर थे, लेकिन उनका चमत्कारी भाषण , भाव से इतने भरे होते थे, कि सुनने वाले भावविभोर हो उनकी आँखों से अश्रु की धारा बह निकलती थी । वे अनाथ और धनहीन भी थे । बावजूद मानव जाति के प्रति उनका जो प्रेम भाव था, वह अकथनीय है । वे कहीं सैन्य शिक्षा ग्रहण नहीं किये थे, फ़िर भी उन्होंने भयंकर कठिनाइयों और रूकावटों के बावजूद, अपने आत्म-शक्ति के बल पर सैन्य शक्ति जुटाई ।
उन्होंने अपने जीवन काल में अनेकों बार विजय हासिल की । उनका कहना था, कुशलता पूर्वक धर्म प्रचार करने की क्षमता बहुत कम लोगों में होती है , और किसी में होती भी है, तो ऐसे लोग कम मिलते हैं ।
मानव जीवन के लिये उत्कृष्ट नमूना पैगम्बर मुहम्मद के जीवन से जुड़ी कार्यशैली को पूरी तरह जानना कठिन काम है; लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं,जो आईने की तरह हमेशा साफ़ , सामने रहती हैं । उनमें से एक है, कि बचपन में अनाथ और निर्धन होने के बावजूद अपने आत्म-बल से, राजसत्ता जो कि इस संसार में भौतिक शक्ति की चरम सीमा होती है, उसे भोगकर इस दुनिया से विदा हुए । जैसा कि इनसाइक्लोपीडिया में उल्लेखित है, समस्त पैगम्बर और धार्मिक क्षेत्र के महान व्यक्तित्वों में, मुहम्मद सबसे ज्यादा सफ़ल हुए । इसका कारण है, अपने समकालीन लोगों में , उनके व्यक्तित्व का साहसी और निष्कपट होना ।
कहते हैं, पैगम्बर मुहम्मद 622 में अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना के लिये रवाना हुए । उस समय मदीना के लोगों की जिंदगी आपसी लड़ाई से बड़ी परेशान थी । उनके मदीना पहुँचने पर वहाँ के लोगों द्वारा उनका काफ़ी स्वागत हुआ । उनकी इस यात्रा को हिज़रत कहा जाता है । यहीं से इस्लामी कैलेन्डर हिज़री की शुरूआत हुई ।
630 में मुहम्मद मक्का पर चढ़ाई कर उसे जीत लिये । उसके बाद वहाँ के लोग इस्लाम कबूल किये । आज मक्का में, काबा को इस्लाम का पवित्र स्थल माना जाता है । पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु 632 में हुई, जिसे मानव जाति के लिये बड़ा ही दुखद दिन माना गया ।
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