Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पता था , तुम बदल जाओगे

 


पता था , तुम बदल जाओगे



है  आज   भी  मुझको  वह  दिन  याद

जबमैं  अपने जीवन के अंतहीन मरु में

दिशा को तलाशती,दुख चट्टानों से टकराती 

खर –पत्तों  सी, यहाँ- वहाँ  भटक रही थी

तब   न   आसमां कुछ बोलता  था

न  ही  जमीं  करती  थी  मुझ संग बात


ऐसे  में  तुम मेरे जीवन के सांध्य वन में 

आकर   हठात   दीप  से  जल  उठे  थे

तुम्हारी लबों से, लफ़्ज़ फ़ूलों से झड़ रहे थे

और  मैं  उन्हें  अपने  हृदय  के दोने में

दोनों हाथों चुन-चुनकर रख रही थी सँभाल


मुझे पता था ,वक्त के पैरहन के साथ

एक  दिन  तुम  बदल  जावोगे  ,तब

मेरे  टूटे दिल को,आँखों से परे,श्रूति के 

उजाले में,सँभालेगी आकर यही आवाज


यही  आवाज  मुझे  एक दिन

दुख-  पीड़ा  के सहस्त्रों सूरज से

बरस रहे अग्नि-ताप से बचायेगी

वरना  कौन  सुनेगा, झुलस  रहे

मेरे  हृदय  वेदना का प्रणय गीत

जिसमें नहीं कोईअवसाद



आज बिछोह के सघन वेदना तम में

जब  कि  तुम  नहीं  हो  मेरे साथ

तब  मेरे  सजल नयन में नीरद सी

वही  आवाज  रहती  दिन और रात


अब  जग  वालों  की  बात न पूछना

तृषित  प्राण  को  लगता  जब शीतल

पानी की प्यास,मिलती चुल्लू भर आग

कहता  पीयूष  की बात मत कर, मत

रख  अरमानों  के अनुभव में आह्लाद

तब  आँखों  से  झड़  रहे ,सावन की

नदिया  में  कागज  का  नाव  लेकर

पार लगाने आती,  वही आवाज

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