प्राण – पंछी
तन पिंजर का पंछी
रूप जगत की छाया
तुझको कभी नहीं छू सकती
तेरा रेखा - चित्र अकल्पित
तू प्रलय में भी सुरक्षित
मन दर्पण में तेरी छवि
होकर रंजित जब होती बिंबित
शत भावों के विकच दलों से मंडित
हृदय , तुझे अपना मानकर
निखिल विचार , विवेक , तर्क
सब कुछ कर देता तुझको अर्पित
लेकिन तू, मनुज भाग्य को
किस्मत की जलती डाली से
बँधा देख अपना आशिया छोड़
क्यों उड़ भाग जाता
क्या , मनुज हृदय की वेदना
तुझसे सही नहीं जाती
या यह सोचता तू कि हड्डियाँ
तक जहाँ जली जा रही
वहाँ जीभ पकड़कर बैठे
रहना, कैसी होगी बुद्धिमानी
जब कि मनुज अपने भाग्य में
नियति से जलना,लिखवा लाया है
जिसकी है सत्ता सारी
याद करो मनुज वंश के अश्रु योग से
प्रथम दिन जब पहचान हुआ था तुझसे
तूने कहा था, मनुज तुम संग रहकर
सब खट्टे - मीठे फ़लों को चखूँगा
जो कुछ भी है भाग्य में तुम्हारा
लेकिन निराकार के आकारों में
डूबी जा रही मनुज की निस्तब्ध
आँखों को , तूने नहीं सँभाला
अपने हित मैत्री वचन को तोड़ा
कहा, वेदना पुत्र ! तू केवल जलने का
अधिकारी, जगत को मिले रोशनी
तू जलता चल , अगले जनम में
फ़िर होगा मिलन , मेरा - तुम्हारा
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