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प्रेत--यात्रा मार्ग

 

प्रेत--यात्रा मार्ग

गरीबनाथ के सर पर काली पट्टी बंधा देख , उसके दादा रामदास समझ गए, कि गरीबनाथ के सर में दर्द है | तभी उसकी माँ ने तांत्रिक को बुलवाकर उसके सर पर काली पट्टी बंधवाई है | रामदास आवाज देकर गरीबनाथ को अपने पास बुलाया, और पूछा ---क्या तुम आज फिर उस नीम के पेड़ के नीचे खेलने गए थे ? 

गरीबनाथ भयभीत हो धीमी आवाज में बोला---- हाँ गया था, लेकिन सच मानिये दादाजी, मैं जाना चाहता नहीं था |

दादा रामदास--- गुस्से से आगबबूला होते हुए बोले---- तब फिर गया क्यों ? 

गरीबनाथ बोला ----- वो कुंवर का छोटा बेटा, टूसना है न, जो मेरे साथ पढ़ता है, वही मुझे बुलाकर वहाँ खेलने ले गया | 

रामदास को गरीबनाथ पर क्रोध की जगह हँसी आ गई | उन्होंने गरीबनाथ को समझाते हुए कहा---- कोई तुम्हें कहीं जाने कहेगा, तो तुम वहाँ चले जाओगे ? 

गरीबनाथ चुप रहा, रामदास ने उसके छोटे-छोटे गालों को सहलाते हुए कहा---- बेटा, तो मैं कहता हूँ, जा तुम अपनी छोटी बहन गुडिया को टुसना के घर सदा के लिए रख आ |

गरीबनाथ कुछ देर तक विचारता रहा, सोचता रहा, फिर बोल उठा --- नहीं, मैं उसे नहीं दूंगा , वह मेरी बहन है | 

इस पर रामदास बोले---- लेकिन ऐसा नहीं करने पर टुसना तुमसे नाराज जो हो जायगा, क्या इसके लिए तैयार हो ? 

गरीबनाथ हर्षाता हुआ बोला---- हाँ, मैं तैयार हूँ |

दादा रामदास बोले--- ठीक है, तो अब से टुसना नाराज हो या खुश, उसकी परवाह तुम नहीं करोगे|

गरीबनाथ कड़े शब्दों में कहा--- नहीं, कभी नहीं करूँगा, और अब से उसके बुलाये से कभी कहीं भी नहीं जाऊँगा|

गरीबनाथ से ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी, सुनकर दादा की आँखों से अनुराग टपक पड़ा| उनका एक-एक रोम पुलकित हो उठा| उन्होंने ईश्वर से कहा---हे ईश्वर! तुम्हारा लाख-लाख शुक्र है|

गरीबनाथ, कुछ देर बाद दादा के नजदीक गया और विनीत स्वर में पूछा ---लेकिन दादा जी, मैं वहाँ खेलने क्यों नहीं जाऊँ, यह तो आपने बताया ही नहीं  |

दादा,बिना किसी लागलपेट के बोले---- वहाँ प्रेत रहता है, जो मनुष्य को बीमार पड़ा देता है |

गरीबनाथ आश्चर्यचकित हो पूछा--- ये प्रेत क्या है, कहाँ से आता है ?

रामदास, गरीबनाथ को समझाते हुए बोले----आदमी मरने के बाद भूत बन जाता है, लेकिन अभी तुम बच्चे हो, तुम्हारे लिए और अधिक कुछ जानने की जरुरत नहीं है| बस, जब मैं नीम के पेड़ के नीचे खेलने से मना करता हूँ, तो तुम वहाँ नहीं जाओगे |

गरीबनाथ, सर खुजलाते हुए बोला----मत बताइये, मैं समझ गया, उधर से प्रेत आता-जाता है, क्योंकि वहाँ एक बोर्ड लगा हुआ है, ‘प्रेत -यात्रा मार्ग’ |

दादा हँसे और वाणी को विभूषित कर बोले---- बेटा, उधर से प्रेत नहीं, मरे हुए आदमी को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है| दूर काली माई के मन्दिर के पास एक नदी है, वहाँ श्मशान है; मरने के बाद घर वाले मृत शरीर को जिस रास्ते से ले जाकर उसकी अंत्येष्टि-क्रिया करते हैं, उसे ही प्रेत-यात्रा मार्ग कहा जाता है |

मृत्युपरांत मृत-आत्मा, तब तक प्रेत बनकर भटकती रहती है, जब तक कि उसके पुत्र-पौत्रों द्वारा पिंडदान नहीं किया जाता है| इसलिए मृत्युपरांत दश दिनों तक पिंडदान आवश्यक बताया गया है | दशवें दिन पिंडदान के चार भाग होते हैं :- दो भाग मृतदेह को प्राप्त होते हैं, तीसरा हिस्सा यमदूत को प्राप्त होता है, और चौथा हिस्सा, पापात्मा रूप प्रेत का ग्रास बनता है | मृत शरीर के अंतिम संस्कार के उपरांत पिंडदान से प्रेत को हाथ के बराबर शरीर प्राप्त होता है| पिंड शरीर धारण कर ग्यारहवें व बारहवें दिन भोजन करता है और तेरहवें दिन यमदूत उसे पृथ्वी लोक से यमलोक लेकर चला जाता है|

गरीबनाथ चुपचाप कहानी सुन रहा था, तभी दादा बोले ---ठीक है, अब तुम समझ गए होगे, प्रेत क्या होता है | 

मगर गरीबनाथ कब चुप रहनेवालों में से था, वह आगे जानने के लिए और अधिक उत्साहित हो उठा, बोला--- आप भी मरने के बाद प्रेत बनकर प्रेत-यात्रा मार्ग पर उछल-कूद मचायेंगे, तब तक, जब तक कि मैं आपका पिंडदान न कर दूँ |

दादा बोले --- इसलिए पिंडदान करना भूलना मत, क्योंकि अनिष्ट शक्तियाँ, अधिकतर भूलोक पर ही निवास करती हैं, जहाँ वे मनुष्य को आवेशित करती हैं | इन अनिष्ट शक्तियों का अस्तित्व विभिन्न स्थानों पर होता है; जीवित और निर्जीव वस्तुओं में वे अपना केंद्र बना लेते हैं | ये काली शक्तियाँ साधारणत: मनुष्य-वृक्षों में ( नीम, वट, इमली, पीपल, महुआ आदि के ऊपर) अपना अस्थाना बनाती हैं | ये शक्तियाँ मूलभूत वायुतत्व से बनने की वजह से इन्हें सूक्ष्म दृष्टि के बिना देखना संभव नहीं होता | कई बार अग्नि-संस्कार अच्छे ढ़ंग से नहीं किये जाने से भी मृत का देह इस परिसर में बार-बार दिखाई देता है | ऐसे स्थानों में जाने से अनेक लोगों को अस्वस्थ लगना, भारीपन-थकान आदि प्रतीत होता है; तथापि कभी-कभी थकान की वजह से भी होता है |

दादा का बोलना बंद हुआ, अचानक गरीबनाथ रोने लगा | 

दादा ने गरीबनाथ को पुचकारते हुए, गोद में बिठाकर पूछा--- बेटा, तुम रोने क्यों लगे ?  

गरीबनाथ रोते हुए बोला----मुझे भी भूत ने पकड़ रखा है, इसलिए मेरे सर में इतना दर्द होता है |

तभी गरीबनाथ के गुरूजी, शिवा सिंह जी आ गए | उन्होंने दादा से पूछा---गरीबनाथ क्यों रो रहा है ?

दादा ने क्रमश: नीम के पेड़ के नीचे खेलने तक की घटना बताई |

सुनकर गुरूजी ठहाके मारकर हँसने लगे, बोले ---- गरीबनाथ चुप हो जाओ | आँसू पोछकर मेरे पास आओ; मैं बताता हूँ तुमको, भूत क्या होता है ? पहले तुम इस जल रही बिजली-बत्ती को बंद करो | 

गरीबनाथ ने स्विच ऑफ़ कर दिया |

गुरूजी ने पूछा--- जो अभी तक रोशनी थी, वो कहाँ गई ? 

गरीबनाथ ने रोते हुए कहा--- पता नहीं | 

गुरूजी हँसते हुए फिर बोले---- अब स्विच ऑन कर दो | स्विच ऑन करते ही अंधेरा ख़तम हो गया, लाईट जल गई | गरीबनाथ खिलखिलाकर कर हँस पड़ा |

गुरूजी पूछे--- तुम हँस क्यों रहे हो ? 

गरीबनाथ ने कहा --- बल्ब तो तब भी था, जब मैंने बिजली का स्विच ऑफ़ किया, और अब भी है, लेकिन तब अंधेरा इसलिए था, कि उसमें इनर्जी नहीं थी | इनर्जी को कोई पकड़ नहीं सकता | गुरूजी बोले---- अरे गरीबनाथ, तुम तो बहुत होशियार बच्चा हो | ठीक इसी तरह, आदमी की आत्मा एक लाईट है, जब तक आदमी के शरीर में वह है, आदमी ज़िंदा है, और उसके निकलते ही आदमी निर्जीव हो जाता है | दरअसल यह भूत-प्रेत, सब आदमी का अंधविश्वास है | फिर भी ,अभी तुम बच्चे हो, इसलिए सुनसान जगह पर तुमको नहीं जाना चाहिए, क्योंकि निर्जनता भी एक प्रकार का भूत है, जहाँ आदमी कभी-कभी इस प्रकार डर जाता है कि उसकी मौत भी हो सकती है | ऐसे में लोग कहते हैं, उसे भूत ने मार डाला; प्रेत ने पटक दिया, जिससे गिरकर उसका सर फट गया और उसकी मौत हो गई |



 


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