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Dr. Srimati Tara Singh
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रक्षा बंधन

 

रक्षा बंधन

हमारा जीवन व्यापक और अनंत है , इस अनंत प्रवाह में जीवन का प्रत्येक दिन अनवरत बहती एक धारा है । इसके प्रवाह में सुबह होती है, फ़िर साँझ ढ़लती है । इस प्रकार दिन बीतते चले जाते हैं । आज,कल,परसों सामान्य दिनों की यही तो गति है । सृष्टि का यह क्रम अनंतकाल से चलता चला आ रहा है । अपने जीवन के आते-जाते सभी दिनों को याद रखना आसान नहीं,किन्तु कुछ दिन ऐसे होते हैं जिन्हें लोग ताउम्र भूल नहीं पाते । अगर वह दिन किसी जाति विशेष या राष्ट्र जीवन से जुड़ा होता है तो,उस दिन की तरह वे यादें भी अमर हो जाती हैं । जो पर्व जीवन में अनंत प्रेरणाओं का स्रोत अर्थात जीवन से सम्बन्ध रखता है, उस पर्व के आने का इंतजार, पर्व खत्म होते लोग शुरू कर देते हैं । मैं मानती हूँ, रक्षा बंधन को राष्ट्रीय त्योहार की मान्यता नहीं है , लेकिन जिस तरह लोग जाति-धर्म को भूलकर,एक दूसरे की कलाई पर राखी बाँधते हैं , किसी राष्ट्रीय पर्व से कम भी नहीं है ।
वैसे इस पर्व का सम्बन्ध रक्षा से है; जो हमारी रक्षा करता है,उसकी कलाई में हम रक्षा-सूत्र बाँधते हैं । द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण ने ,युधिष्ठिर से यह त्योहार अपनी सेना के साथ मनाने की बात कही थी । उन्होंने कहा था, रक्षा के इस सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है ; इसलिए किसी भी राजा को यह पर्व ,अपनी सेना के साथ मनाना चाहिये । महाभारत काल में, शिशुपाल वध के समय श्रीकृष्ण की उँगली जब जख्मी जख्मी हुई थी, तब द्रोपदी अपनी साड़ी का आँचल फ़ाड़कर,कृष्ण की उँगली पर बाँधी थी । तब श्रीकृष्ण ने भी,धागे-धागे की रक्षा करने की शपथ ली थी । कहते हैं, उस दिन सावन की पूर्णिमा थी; कहावत तो यह भी है, जैसा कि भविष्य पुराण में लिखा है । रक्षा बंधन सबसे पहले इन्द्र की पत्नी ने देवासुर संग्राम में, असुरों से विजय पाने के लिए बाँधा था और देवराज इन्द्र विजयी हुए थे ।
इस रेशम के धागे की शक्ति का अंदाजा हम नहीं कर सकते । आधुनिक समय में, राजपूत रानी कर्मावती की कहानी काफ़ी प्रचलित है । जब रानी कर्मावती ने ( जो कि चित्तोड़गढ़ के राजा की विधवा थी ) गुजरात के सुलतान बहादुरशाह से अपने राज्य की रक्षा के लिए हुमायुं को राखी भेजा था और हुमायूं ,अपनी लड़ाई को बीच में ही छोड़कर अपनी शक्तिशाली सेना के साथ कर्मावती का युद्ध लड़ने लौट आये थे । अंत में,युद्ध कर कर्मावती को विजय दिलाया और एक सच्चे भाई होने की पहचान प्रमाणित किया । अनेकानेक उदाहरणों में एक यह भी है कि हमेशा विजयी रहनेवाला अलेक्जेंडर, भारतीय राजा पुरु की प्रखरता से काफ़ी विचलित था । पति की चिंता से, उसकी पत्नी भी चिंतित रहने लगी ; तभी उसे रक्षा बंधन की याद आई और उसने राजा पुरु के लिए राखी के साथ दीर्घायु होने की कामना भेजी । इससे राजा पुरु का मन बदल गया और उसने युद्ध को बीच में ही स्थगित कर दिया तथा अलेक्जेंडर की पत्नी को उसी दिन से अपनी बहन मान लिया ।
इसके अलावा भी कई शास्त्रों से जुड़े कई कारण हैं । कहते हैं, भगवान विष्णु ने बावन अवतार धारण कर बलि के अभिमान को इसी दिन चूर किया था । एक पौराणिक कथा के
अनुसार, देवों और दानवों के युद्ध में जब देवतागण हारने लगे थे, तब वे लोग दौड़ते हुए देवराज इन्द्र के पास मदद माँगने पहुँचे । इन्द्र की पत्नी ने देवताओं को चिंतित और परेशान देखकर,उनके हाथों में रक्षा-सूत्र बाँध दिया । इससे देवताओं का आत्मविश्वास जगा और वे दानवों को परास्त कर विजय प्राप्त किये । तभी से रक्षा-बंधन,इस मनुज लोक में प्रचलित हुआ । दूसरी मान्यता यह भी है कि ऋषि-मुनियों की पूर्ण आहुति इसी दिन (श्रावन की पुर्णिमा के दिन) होती थी । कारण जो भी रहा हो, लेकिन आज विश्व-स्वरूप रक्षा की बहुत आवश्यकता है । हमने स्वतंत्रता के लिए अनेक बलिदान दिये ; अब इस स्वतंत्रता को मान्य और मूल्य पर बनाये रखना है । इसके लिए ,भाईचारा, प्रेम और त्याग का रक्षा-सूत्र चाहिये, जो सबों को एक साथ,एक धागे से बाँधकर रख सके ।
आज खून के रिश्ते,पानी बनते दीख रहे हैं । माँ-बाप, भाई-बहन, गुरु-शिष्य, कहीं भी रिश्ते की मजबूती नहीं दिखाई पड़ती । एकता की कड़ियाँ कमजोर पड़ रही हैं । ऐसे समय में, रक्षा-बंधन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है । यूँ तो भारतवर्ष पर्व-त्योहारों का देश है । यहाँ साल के बारह महीने में पचासों त्योहार मनाये जाते हैं ।परन्तु कुछ त्योहार, राष्ट्रीय त्योहार होते हैं, जिसे सभी मिलकर मनाते हैं । इनमें रक्षा बंधन, दीपावली और दुर्गा-पूजा की तरह ही, सर्वप्रमुख हैं । भाई-बहन के पवित्र प्यार का प्रतीक,राखी का यह पर्व, कैलेंडर के अनुसार श्रावन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है । इसे अलग-अलग स्थानों और लोक परम्पराओं के अनुसार अलग-अलग रूप में मनाया जाता है ।
इस रक्षा सूत्र को भाई-बहनों के अलावा,पुरोहित भी अपने यजमानों को राखी बाँधकर यशस्वी होने का आशीर्वाद देते हैं और यजमान भी उनका आदर जताते हुए उनकी चरण-धूलि अपने मस्तक से लगाकर,अपनी आस्था और विश्वास को कभी न टूटने देने की प्रतिग्या करते हैं । इस तरह यह रक्षा बंधन का त्योहार,एक दूसरे की शक्ति बढ़ाता है । हमारे समाज और देश को, ऐसे पर्वों की आज बहुत जरूरत है , जो रक्षा के सूत्र में बांधकर,देश को एकजुट रख सके ।





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