रात जागे हैं, नींद आती नहीं
काफ़िर के आँखों की शरारत जाती नहीं
क्या बात करूँ उस बेहया की, जब आती
है याद, मेरी नज़रों से शर्माती नहीं
आतिशे-आग1 में जल- जलकर दिल खाक हुआ
वो है कि उसे बू-ए-सोजे-निहाँ2 आती नहीं
डरूँ कैसे न उस सितमगर के कूचे में जाने से
मुहब्बत है, कि भरोसा दिलाती नहीं
शाखे-गुल3 की तरह रह-रह के लचक जाती है वो
उसे मेरे दिल पे लगी चोट नजर आती नहीं
1.इश्क की आग 2.जलने की गंध
3.डाली पर के फ़ूल
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