Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रुख बदलकर मौजें तुफ़ां हो गईं

 


रुख बदलकर मौजें तुफ़ां हो गईं

कल जो गुल थीं, आज गुलिस्तां हो गईं


निगहे-गर्म से टपकती है आग, सोचता

हूँ, कैसे ये बस्तियाँ वीरां हो गईं


बेकसी ने उड़ा ले गई, आँसुओं का कफ़न मेरा

जिंदगी मेरी इम्तिहां की मैदां हो गईं


दिल में लिये थी हजारों तमन्नाएँ, फ़िर जुल्फ़ें उसकी, 

मेरी बाँहों में क्यों परेशां हो गईं


तेरे ही हुश्न-ओ-जमाल1 से है जमाने में रोशनी

यह कहने में गलतियाँ कहाँ हो गईं


1. सूरत की चमक


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