Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सच्ची श्रद्धांजलि

 


सच्ची श्रद्धांजलि


आओ ! उस माँ के चरणों में हम शीश झुकाएँ

जिसने  हँसते- हँसते  राष्ट्रदेव की प्रतिष्ठा में

स्वतंत्रता  की वेदी पर, चढ़ा दिया अपना लाल

कहा, यम दो बार कंठ नहीं धरता,मनुज मरता 

एक बार, मत  छोड़  तू  भारत की  आन

मत कर तू अपने जीवन की,तनिक भी परवाह

हम उसमाँ  के  घर तिरंगाफ़हराएँ

आँखें नम कर,  करें उनकोनमस्कार


प्रशासनके परिसर में  नहीं

कलक्टर की  इमारत में भी नहीं

वीर भगत सिंह की है जहाँ मज़ार

कुँवर सिंह जी ,जहाँ अपनी बाँह

काटकर  गंगा को अर्पण किये

पवित्र हुआगंगाका धार


राजगुरु  सुखदेव की मही है जहाँ

दुर्गा  भाभी की देहरी पर, जलियाँ-

वाला  की  लहूलुहान परती पर

नन्हे शिशु  चिना  गये, आती है

आज भी जहाँ से, उनके रुदन की

आवाज,खड़ी है आज भी वह दीवार

चलो, चलकर वहाँ तिरंगा फ़हराएँ

श्रद्धा-दीपों कीबाँधें वहाँ  कतार



चलो कलम  स्याही,  सेचलकर  

उससेना  को करें नमस्कार

जोक्रांतिकी कविताएँ, लेख -  आलेख

लिख-  लिख पत्रों में ,  परिसंवादों में

भेजतारहा कारागारों  में,  बताता रहा

दुर्दिन में फ़ंसी-कराहती भारत माँ का हाल

खाता   रहा   कसम,  दिलाता रहाआस

ओ ! स्वतंत्रता के महायग्य में अपना हविष्य

चढ़ाने  वाले , खुद को  अकेला मत समझना

बाहरबैठा है  कफ़न  लेकर,  तुझे  अपने

घर  ले  जाने  तुम्हारा  यार,  चलो,  चलकर

उस साधक को हम करें,नम आँखों से नमस्कार


उससे माफ़ी माँगें,उसे बता दें,जिसका आज भी

सूरज  की  किरणों  संग,झड़ता  शौर्य प्रकाश

जब  चटक रोशनी  आ रही थी हमारे पास

हम  समझ रहे  थे, गया अंधेरा,आया प्रभात

तब तू मृत्युगढ़ पर, जयकेतु –सा खड़ा था

जल  रही  थी  निर्भीक  तेरे चिता की आग

चलो,चलकर उस श्मशान में,हम तिरंगा लहराएँ

जहाँ  से  चलकर, गये हमारे  वीर आकाश


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