स्मृति
बीती यादों की स्मृतियाँ
जीवन की पंखुड़ियों पर
नित करतीं कल्लोल
कभी आँखों में अश्रु भरकर
कमल समान डूबतीं, उतरातीं
अस्फुट रेखा की सीमा में
अदृश्य आकार की कला दिखाकर
मन लोक को रख देती खोल
कभी मस्तिष्क के चित्रपट पर
दिखलाकर पिछला जीवन
मन को अतीत के लौह खूँटे
से बाँधे रखतीं, कभी
बेकल मन में भरकर, मरने
के बाद जीने की अमरता
साँसों की डोरी पर बैठकर
प्राण संग लड़ातीं लोल
कभी उद्गम से छूटी नदियों में
लहरों को दिखलाकर कहतीं
मृत्यु के पथिक ठहर, प्राणियों के
भाग्य समान उठते-गिरते देख लहर
तुम्हारे मुख की आभा क्यों गई उतर
क्या तेरी पीड़ा पर किसी निष्ठुर ने
छिड़क दिया लाल मिर्च का घोल
जो घनश्याम खंड़-सी तेरी आँखों में
सहसा जल भर आया ज्यों शीत
लहर में पल्लव काँपता, त्यों
तेरा अंग-अंग रहा है डोल
कभी अतीत के त्याग-तपस्या की
वीरगाथा को सुनाकर
कलेजे पर दहकते अंगारे को रखती
कभी हाथ में पकड़ाकर छिन्नपात्र
दूर किसी अनजान नगरी में ले जाती
वहाँ साँझ पड़ी सी जीवन छाया में
आशा को दिखालाकर कहती
इनके स्तर-स्तर में भरी है मौन शांति
शीतल अगाध, तप प्रांति
तू क्यों भव भविष्य का द्वार खोल
लगा रहा जीवन का मोल
कभी नयन कोर पर काँपती रेशमी
साड़ी से झड़े कंचन कणों को दिखलाकर
कहती, विकल यौवन पाश के
झीनी बंधों में बंधकर सारे टूट गये
इसके मटमैले रंग संग घुली हुई है
अतीत की भावनाओं की चीख
हृदय के मधुर मिलन का क्रंदन
और नीरव अतीत की पुकार
जो आकांक्षा के जलनिधि की सीमा
क्षितिज पर है अनमोल
इसमें पल भर का मिलन है
और चिर जीवन का है वियोग
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