तुमको तुम्हारा ख़ुदा याद नहीं
हमको हमारा सदा याद नहीं
लुटाकर तेरे गम में, अपना घर
बेघर-बार हुआ,अब मोहल्ला याद नहीं
मिटने चलीं जिंदगी की कद्रें, फ़िर भी
कैद-ए-हयात1 से हुआ आजाद नहीं
जो तुम चाहो, तो वक्त संवर जाये
न चाहो तो कैसे होगा वह बर्बाद नहीं
तुम्हीं कहो, कौन ऐसा गुलिस्तां है
जहाँ घात लगाकर बैठा है सैय्याद2 नहीं
1. जिंदगी का पिंजड़ा 2.शिकारी
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