Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यमुना

 

यमुना

यमुना, सदियों से फ़ूलों की मृदु
गंध सी , तुम्हारे लहराँचल से
लिपट खेलती आ रहीं जो स्मृतियाँ
जिनसे पूरित है,तुम और यह दुनिया

क्या एक बार ,उसे अपने रसावेश से
निकालकर ,हमें दिखला सकती हो
बता सकती हो, आज से हजारों साल
पहले ,द्वापर युग में , कृष्ण – पक्ष
अष्टमी की रात को, जब नीरवता के
तम प्रशांत में डूब चुका था सारा प्रांत
निशा की अलसाई पड़ी छाया भी
शिशिर कण पर सो रही थी श्रांत

केवल झिंगुर था जाग रहा
जो अपने प्रखर स्वर से तुम्हारे
दोनों तीरों को था चीर रहा
पत्रों की मर्मरता हो चुकी थी शांत

तभी स्वर्ग् देवताओं की आकाशवाणी हुई
कहा जगत का पालनहार ,स्वयं विष्णु
कामदेव का शिशु रूप धारण कर
अपनी कांति से अंधकार मय भव को
परमोज्ज्वल करने धरा पर उतर चुके हैं
अब वहीं दिखलायेंगे सभी जीवों को
कर्म मार्ग ,जिससे जीवन होगा उद्धार



सुनती हूँ,यह सुनकर यमुना,तुम्हारा सुंदर यौवन
उमंगों से भर,भावना की तरी सी उछल पड़ा था
और अपने क्षीण प्रवाह को बढ़ाकर वेग गति से
बहने लगी थी ,छाया प्रकाश के पटल खोल
भावों की गहराई को , रही थी निहार


मंदिरों में स्वर्ण – घट बजने लगे थे
व्योम में गुंजने लगे थे,मेघ-गर्जन,मृदंग
जिसे सुनकर, पवन अचम्भित हो उठा था
घने पत्रों के बीच सोये खगकुल सभी
जाग उठे थे ,और आनन्दित हो अपने
सुभग पंखों को खोल,हरित पर झुका नील-
नभ से उतर आने का, लगा रहा था गुहार


नभ बीच नभ गंगा , ज्योति
फ़ेन सी तरंगित होने लगी थी
जगती की अनिमेष पलकों पर
अर्द्धरात्रि में दिनमान उग आया था
प्रकृति लता के यौवन में पुष्पवती के
माधव का मधुहास था वह पहला





मतवाली बनी सृष्टि की माया को देख
तुमने निज मन को कैसे सँभाला
कैसे तुमने अपनी लोल लहरियों के
छोर को , प्रभु के चरणों पर उछाला
मंगल गानों से मुखरित करती
स्त्रियों के दल कैसे दीख रहे थे
अँजलि भर सुमन लिये,तुम्हारे पास
खड़ी कैसी लग रही थी श्रद्धा




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