Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बदल चुका है अहले- दर्द का दस्तूर

 


बदल चुका है  अहले- दर्द  का दस्तूर

अब दीखता नहीं, जनाजे का हमराह,दूर-दूर

कफ़न में लिपटा देखकर उसे,आँखों में उतर

आया  खूं, लोग समझे  हैं,शराब का सुरुर1


अपनी  रुसवाई2, उसकी  शोहरत  में मिली

फ़िर भी नाज है हमको, हम हो गये मशहूर


मलाले-यार3   ने   हमकोमलालदिया

सरुरे-यार से हासिल  हुआ  हमें  सुरुर


नादां  हैंजो  कहते  हैं, क्यों जिंदा हो,तुम

उसे  पता नहीं, घर से चौकठ होता नहीं दूर



  1. नशा 2. अपमान 3. यार का दुख

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ