Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गैर की जिक्रे-वफ़ा पर जलता दिल, वो क्‍या जाने

 

गैर की जिक्रे-वफ़ा1पर जलता दिल, वो क्‍या जाने

वो तो हमारी हर बात पर कहती खुदा जाने


किस-किस का न दिल खूँ हुआ होगा जब उसने

अपने सीने से दुपट्टे को सरकाया होगा, वो क्या जाने


हम तो बेखुद रहे उसकी याद में, वह कब आई

कब मिली, कब चली गईं, हम क्‍या जाने


जोंद आई नहीं रात तड़प-तड़प कर बीती उसके

इंतजार में, इनकार होता है क्या, वो क्‍या जाने


कभी लड़ना, कभी मिलना, कभी दिल तोड़कर चल देना

डस शोख-तबीयत2 को, देवता न जाना, हम क्या जाने


1.दूसरों की अच्छाई 2. शरारती ढंग




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