Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गैर से रात क्या बनी, तुम खफ़ा हो गये

 


गैर से रात क्या बनी, तुम खफ़ा हो गये

यार मेरे, क्या थे तुम, क्या हो गये


कभी कहते थे, दो दिल एक जान हैं हम

आज दिल से दिल कैसे जुदा हो गये


चार दिन भी कहीं आराम न कर सका

हम एक बेवफ़ा पर फ़िदा हो गये


कहाँ है वह फ़सले-बहारी, वादे मुराद

कैसे चमन का खेमा-ए-गुल पल में हवा हो गये


जब से जमान-ओ-मकान तुम्हारा, गैर से हुआ

हम जमीं, तुम आसमां हो गये

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