Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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है भूल मेरी, जो तेरे वादे पे

 


है   भूल  मेरी, जो  तेरे  वादे  पे  एतवार  किया
अश्क के सैलाब को कश्ती-ए-मय1 से पार किया

सोचा , गमे हिज्र में दिल , उम्र भर तड़पेगा
पेशवाई3 में उसकी , अपना निकहता-गुलजार2 दिया

जमाना है बेहिजाबी4 का , सो उठाकर नकाब
अपनी राजे- माशूका5 के, हुस्न का दीदार किया

जब पूछा ख्वाबों में जिसे तराशा था मैं, तुम
वही हो , फ़िर मिलने से क्यों इनकार किया

सुना है बागे-आलम6 का, हर गुल खुदा की कुदरत है
मगर कौन है बागबां,जो इस चमन को रुखसार7किया


1.शराब रूपी नाव 2. बाग की खुशबू 3.स्वागत 4.आवरण
उठाना 5.दिल की रानी 6.दुनिया रूपी उद्यान 7.निखारना

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