Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हमसे मत पूछ, मुहब्बत में क्‍या पाया

 

हमसे  मत    पूछ, मुहब्बत    में    क्‍या      पाया

फ़ुरकत की जलन1 मिट गई, मरने की दवा पाया


बची जान उसकी जालिम अदा से, जब

निगाहे-नाज2 को, सुरमे से ख़फ़ा पाया


आती है अपनी बेकसी-ए-इश्क3 पर रोना, ख्वाबों से

लिपटी रहने वाली को दिल से जब जुदा पाया


ये जन्नत मुबारक हो उसको, हमने तो

अपने ही हाथों, मरने की सजा पाया


जमीं बोझ बनी, या आसमां का बार4

जो हमने मुहब्बते-बार को न उठा पाया


1. जुदाई का दुःख 2. सुंदर आँख 3. इश्क पे रोना 4.बोझ

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