Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जहाँ जिंदगी ज़ामे हलाल पीकर अमर हो

 

जहाँ जिंदगी ज़ामे हलाल पीकर अमर हो

जाती है, मैं वहाँ जाकर रहना चाहता हूँ


नींद आ जाये, मेरी तकदीर को, मैं

तदवीर के दीये, बुझाये रखना चाहता हूँ


मुझे गुमराही का नहीं कोई खौफ़, मैं वक्त

के सीने में, शम्मा जलाये रखना चाहता हूँ


मुझे मेरी हस्ती का मकसद मालूम नहीं

मगर मैं उड़ने के पहले गिरफ़्तार होना चाहता हूँ


गुलजार बुलबुल को मुबारक हो, मुझको दुनिया

से मुहब्बत है, ख़ुदा पर नज़र रखना चाहता हूँ



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