मैकदे1से निकलकर कहाँ जाऊँ मैं
जमींर हूँ या आसमां जाऊँ मैं
यहाँ जिक्रे - जिंदगी नहीं होती, क्यों
बेनकाब हुस्न के इश्क की दरम्यां जाऊँ मैं
दुआ देतेहैं उसे मेरे पासबान2
इस जुल्मते समंदर लेकर कहाँ जाऊँ मैं
अदा-अदा से खींचती है वह तलवारें, मोहरे3
खामोशी, लबे-इन्तजार के कहाँ से लाऊँ मैं
दौड़े बेगानगी में दिल लगाना ठीक नहीं
वो आरजुएँ वो वाबस्ता4 लेकर कहाँ जाऊँ मैं
1.मधुशाला 2.दरबान 3.मौन 4.सम्बंधित
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