Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मानव ! तुम सबसे सुंदर

 

मानव ! तुम सबसे सुंदर



यहजगघर, स्वर्गखंड बना रहे

तुमने क्या कुछ नहीं किया ईश्वर

स्वर्गलोकसे  देवोंका  अतुल 

ऐश्वर्य , शोभा, सुंदरता, प्रीति को

धरापर  वाहित  कर यूथिका में

रंग -  बिरंगे फ़ूलों को  बिखराकर

मधुवन में गुंजते को भ्रमर बनाया

आम्रकुंजमें  बनाया पिकी मुखर


नील  मौन  मेंअम्बर  को गढ़ा

सौरभ  में  बनायापवन  नश्वर

मन  की  असीमतामें,निवद्ध ग्रह-

दिशाकाश प्रतिष्ठित कर

तन के भीतर माटी की सुगंध भरा

और  कहा, सूरज –चाँद-तारे तो हैं

ही सुंदर, मानव ! तुम सबसे सुंदर


तुम्हाराअंतर  स्वर्ण  रुधिरसे  थर-थर

फ़िरभी  तुमअपनी  महत्वाकांक्षा  से

स्वर्ग क्षितिजसे  रहते  उठकरऊपर

तुम्हारीअलकों  को  छूकर शीतल समीर

बहताजब  धरा  पर , तुम  उसेअपने

उरमें  भर  जीवनका  रंगता  पदतल

तुम्हारी बाँहोंमेंबंधकर , जगती  का

सुख-दुख विस्मृत होता,तुम्हारा हृदय समंदर




तुमइसी  तरह  जगअंधकार को हरने

अपने करमें लेकर  स्वर्गशिखा

विचरते रहो , जब  तकहै  यह  धरा

लिखते रहो,कृति स्तम्भ से उठाकर अपना

करसे  अम्बर पट का ज्योतिर्मय अक्षर

तुम्हाराइतिहास अम्बर ,तुम सबसे सुंदर


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