Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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श्वेत फूल की माला

 

श्वेत फूल की माला

रात के आठ बज चुके थे | हवा अभी तक गर्म थी ; आकाश के तारे गर्द से धुँधले हो रहे थे | गंगाराम अपने आँगन से एक चारपाई पर मन मारे बैठे ,गर्मी को कोस रहे थे | तभी बाहर से एक जानी-पहचानी आवाज आई | गंगाराम उठकर बैठ गये , और आवाज ऊँची कर बोले ----रामधन ! दहलीज का दरवाजा खुला है, तुम आँगन में चले आओ |
रामधन, गंगाराम के पास आकर धीमी आवाज में कहा----- भैयाजी ! आपको चलना होगा |
गंगाराम, बड़ी ही आत्मीयता के साथ कहा------ आये हो तो थोड़ा बैठो , चाय-वाय पी लो | ऐसे भी तुम्हारा दर्शन आजकल कभी-कभार ही होता है |
रामधन आर्द्र कंठ से कहा -------- भैयाजी , फिर कभी आऊँगा, तब चाय पीऊँगा | अभी रूकने का बख्त कहाँ है , कई जगह जाना होगा ?
गंगाराम, दिल्लगी करते हुए बोले ------ कहाँ, अपने लिए लड़की देखने ? अगर ऐसी बात है, तब तो मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा | मगर यह तो बता दो. इसमें मेरा क्या काम है ? क्या तुम्हारे साथ मुझे भी जाना है ?
रामधन-------- हाँ भैया, पर लड़की देखने नहीं, भावना भाभी के अंतिम संस्कार में , श्मशान घाट |
रामधन के मुँह से ऐसी बातें सुनकर, गंगाराम कुछ देर के लिए अपना होश खो दिए, उनके चहरे पर एक दुस्साहस, आंतरिक वेदना के चिन्ह दिखाई देने लगे | उनकी आँखों के समक्ष अन्धेरा छा गया, फिर भी दीवार का सहारा लेकर वे किसी तरह खड़े हुए,और चिंता और शोक की मूर्ति बने, रामधन की तरफ डबडबाई नजरों से देखकर बोले -----रामधन, तुम समझ रहे हो, कि क्या बोल रहे हो ?
रामधन, अपने ह्रदय-स्थल पर हाथ रखकर बोले ---- हाँ, भैया मैं होश में हूँ | भावना भाभी , दो घंटे पहले, हम सब को छोड़कर चली गई |
गंगाराम, आगे कुछ पूछते , रामधन रोते हुए खुद से खुद बडबडाते हुए बोलने लगा -------- बरसों इंतजार के बाद , जब भाभी के जीवन का अंतिम पड़ाव आया , तब उन्हें, उनके पति का पूर्ण परिचय मिला | इसके पहले तक उनके लिए जीवन, एक पूर्ण तपस्या थी, जिसका मुख्य उद्देश्य था, कर्त्तव्य पालन करना | जब तक जिंदी रही , कभी कठोर चिंताओं से मुक्त नहीं हो पाई, मगर विदाई के अंतिम क्षण, उनकी जाती हुई आत्मा कितनी तृप्त थी , मैं नहीं बता सकता | मानो मृत्यु की दिव्य ज्योति के सम्मुख उनके अन्दर का मालिन्य, सारी दुर्भावनाएँ, सारा विद्रोह मिट गया हो ; उनकी आँखें खुली थीं , मगर पति की विह्वलता, उनकी बुझती चेतना को प्रदीप्त नहीं कर सकी |
गंगाराम, पास पड़े लालटेन की बाती, तेज करते हुए, करुण स्वर में बोले ------ एक लड़की , अपने यौवनकाल के उदय होते ही, काल्पनिक, मगर किसी मनभावन सपने के साथी के साथ चित्र, अपने चित्त में खींचकर, उसके साथ जीने-मरने की कसम खाती है | ऐसे में, उसका चाहने वाला, उसका दिल तोड़कर उसके हवाई किले को निर्दयता के साथ ढा दे, तब आशा के स्थान पर ह्रदय में सदा के लिए शोक घर कर जाता है | बाद रोने के सिवाय बचता ही क्या है ?
नैराश्य-पीड़ित, छिन्नहृदया, भावना भाभी, जब से ब्याह कर ससुराल ( सोहन के घर ) आई, एक तपस्विनी जीवन व्यतीत करती रही, कभी पति का प्यार नसीब नहीं हुआ | सावन में बादलों की काली- काली घटाएँ जब बरसकर जल-थल को एक कर चली जाती थीं, तब जल-थल का आनंद भार भावना भाभी नहीं सह पाती थी | वह आशाओं से भरी हुई शृंगार कर सोहन के पास जाती थी , पर दूसरे ही क्षण अपने पति के चरणों में अपने आँसुओं का पुष्प चढ़ाकर उल्टे पाँव लौट आती थी | कदाचित जो कभी पति-सुख न भोगा हो, उसके लिए, इतना ही आनंद बहुत है | फिर रुआंसा होकर बोला -------- आज भाभी, क्लेशहीन -अक्षय लोक में, पृथ्वी से दूर जलराज्य में , जहाँ कठोरता नहीं, सीधा आत्म-विश्वास है, उसमें जाकर मिल गई |
गंगाराम, एक चिंतापूर्ण आलोक में आँखें खोलकर कहा------- इसका मतलब, भावना, पति के दिये अपमान और आघात को धैर्य के साथ सहने का अभ्यास कर ली थी |
सोहन कुछ उलझन में पड़ते हुए बोला----- आपका विचार बिलकुल ठीक है |
गंगाराम आकाश की तरफ देखा, मानो उसकी महानता में उड़ता हुआ बोला ------ पता नहीं कहाँ तक सच है, पर मैं भी सोहन के बारे में तरह-तरह की बातें सुनता था, लोग कहते थे कि सोहन व्यभिचारी है , पढ़ा-लिखा मूर्ख है, घमंडी है; लेकिन मान-बाप के सामने सर झुकाना उसका कर्त्तव्य है | अगर उसके माता-पिता भावना को किसी देवता के बलिदान की वेदी पर बलि चढ़ा देते , तब भी वह मुँह न खोलता, क्योंकि माता-पिता की तरह सोहन की आँखों में भी धन ही सबसे मूल्यवान वस्तु थी, जिसे पाना दूसरी शादी के बगैर संभव नहीं था | इसके लिए सोहन परिवार ने दूसरी शादी के लिए लड़की भी खोज रखी थो | लेकिन दिक्कत यहाँ थी, कि भावना भाभी के होते, सोहन दूसरी शादी कैसे करे ? समाज, पुलिस और कानुन के भय से , कुछ दिन ये लोग चुप रहे, मगर शीघ्र ही इससे निकलने का रास्ता खोज निकाले ; ‘’ जिसमें साँप भी न मरे, और लाठी भी न टूटे “| घर के हर छोटे-बड़े सदस्य भावना भाभी को प्रताड़ित करने लगे, जिससे कि वह स्वयं घर छोड़कर चली जाए | लज्जा की चितवन में भावना भाभी ,एक क्षमा, करुणा और नैराश्य तथा वेदना की मूरत थी | उसने स्थिति ताड़ ली, और तुरंत फैसला लिया ------ ‘मैं पति के सुख का बाधक नहीं बनूँगी, और जब तक भावना भाभी जिंदी रही , पति-सुख से बंचित रहकर भी, अपने पति के चरणों में ,किसी देव-मूर्ति के चरणों की श्वेत पुष्प की माला सी पड़ी रही | उसके माता-पिता , ने जब भी इस दुखसागर से निकल आने की बात किये , उत्तर में भावना भाभी कहती थी ------ पिताजी, पति के घर पर एक सुहागिन के लिए यह सब कष्ट है, तो सुख क्या है, मैं नहीं जानती ? मगर मैं यह जानती हूँ कि मेरा आत्मोत्सर्ग मेरे ससुराल वाले के प्रण को नहीं तोड़ सकता |
गंगाराम, चुपचाप , हतबुद्धि -सा खडा सब कुछ सुनता रहा, फिर अचानक एक ठंढी साँस खींचकर कहा------- सोहन बहुत देर हो चुकी है |
सोहन -------- हाँ, भैया |
दोनों जब श्मशान पहुँचे, देखे कि अग्नि की ज्वाला भावना भाभी के सर से ऊपर आ पहुँची है, देखते ही देखते वह अनुपम रूप-राशि, वह तपस्विनी, अग्नि-राशि में विलीन हो गई |

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