Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम बिन जीकर देख लिया

 

तुम बिन जीकर देख लिया, अब मरकर देखेंगे
इश्क आग है तो इस आग में जलकर देखेंगे

मुहीते-इश्क1 में उम्मीदों-बीम2 की किश्ती डूब—
डूबकर,उतरती और निकलती कैसे,चलकर देखेंगे

जवानी-ए-रास्ता3 का अफ़सोस कैसा, हम राह-
ए-विसाल-ओ-हिज़रां4 में वर्षों का सफ़र देखेंगे

कदम-कदम पर रहे-इश्क5 में लड़खड़ाती है पाँव
क्यों , दिल- ए- मुज़तर6 को पूछकर देखेंगे

हम तो दैर-ओ-हरम7 के मुसाफ़िर हैं, कुछ इस
राह चलकर, कुछ उस राह चलकर देखेंगे


1.प्रेम रूपी सागर 2.आशा और भय 3.बीती जवानी
4. मिलन ओ वियोग के रास्ते 5. इश्क की राह
6. व्यथित दिल 7. मस्जिद-मंदिर


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