तुम्हारी यादों के जख्म जब भरने लगते हैं
जल्बे तुम्हारे शोले बन, दहकने लगते हैं
फुर्सते ख्वाब में भी अब करता नहीं मैं जिक्रे बुतां1
करने से, गम के सौ-सौ दीये जलने लगते हैं
हसरतों की तबाही में किस कदर दिल उजड़ा मेरा
सोचने से दिले-बादशाह तख्त से उतरने लगते हैं
रफ़ीके2-जिंदगी को मैंने अनीसे-वक्ते3 आखिर समझा
क्यों, जब कि वे मिलते ही चलने लगते हैं
मुहब्बत के दाग भी, निगाहें यार की तरह होते बेरहम
सरश्के-गम4 से धोने से, और चमकने लगते हैं
1. हसीनाओं 2. जीवन साथी 3. आखिर समय का मददगार 4. पीड़ा का अश्रु
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