Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उपदेश

 

उपदेश



आँखें  बता  रहीं तुम्हारे दिल का हाल

छोड़ो  निभाना  अब  तुम , लोकाचार

जब तक लटक रहा है तुम्हारे सीने पर

वक्त    की   बेरुखी   का   तलवार

तभी तक है तुमको,घर-आँगन से प्यार

कल  फ़िर  तुम्हारा  वही  हीन विचार


वक्त- वक्त  की  बात  है, वक्त में होता बड़ा जोर

इसके    आगे   राजा -  रंक ,  योगी  -   भोगी

ब्राह्मण – ग्यानी  सभी  पानी  भरते,जीते कमजोर

इसलिए   वक्त  रहते , वक्त  का  सम्मान  करो

मन के क्षितिज को पार कर,हृदय स्वर्ग् –द्वार खोलो

वक्त- वक्त  कर, वक्त  के आगे, मत मचाओ शोर


वक्त   है  फ़ूलों  की   सेज, वक्त  है  काँटों  का  ताज

जिंदगी   का   एक  पल , वक्त   के   दिन  और  रात

वक्त   है  नदिया  की   बहती  धारा, जो कल- कल कर

आँखों       के    आगे     से      निकल      जाता

मगर   जानता    नहीं   कोई  ,  जाता   किस    ओर

इसलिए   वक्त   से   कदम  से  कदम  मिलाकर  चलो

वक्त एक बार जो गया निकल,फ़िर न आएगा तुम्हारी ओर

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