Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जबाँ पर हम ला न सके वो अफ़साना

 

जबाूँ पर हम ला न सके वो अफ़साना1
रात तुमने सकया, जो न आने का बहाना
मुद्दत से बेरंग है नक्शे-मुहब्बत2 हमारा
हम बैठे हैं हाथ पर हाथ धरे, ज्ों कोई बेगाना
दोस्ती सनभती नजर आती नहीं, महब ब से
मंसजले – हस्ती3 को समझती मुसासफ़रखाना
न सुबहे - इशरत4 है, न शामे- सिसाल5 हमको
जबसे छोड़ा है उसने मेरे क चे में आना
न र में होती इतनी जुल्मत6, हुआ आज उसकी आूँखों
से सासबत, खुदा इस शासतर सनगाह से हमें बचाना
1.कहानी 2. प्रेम का सचत्र 3. सजंदगी की मंसजल
4.प्रात:कालीन सुख 5.समलन की संध्या 6.शैतानी

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