विश्व में कई धर्म के लोग है। हमारे भारतीय समाज में ही हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी आदि कई धर्म के लोग रहते हैं। हर धर्म की एक धार्मिक पुस्तक होती है, जो लोगों को सही राह पर चलने की हिदायत देती है।
मैंने गहराई से तो किसी भी धार्मिक ग्रंथ का अध्ययन नहीं किया है परन्तु मेरा यह मानना है कि कोई भी धार्मिक ग्रंथ हिंसा, झूठ, चोरी-डकैती आदि को बढ़ावा देने की शिक्षा तो नहीं देती है। जब सभी धार्मिक ग्रंथ हमें सही राह पर चलने की शिक्षा देती है तो सदियों से विश्व में धर्म के नाम पर लड़ाई-झगडे़, खून-खराबा, दंगे-फसाद जैसे उदाहरण हमें यह सोचने पर मज़बूर करती है कि क्या धर्म वास्तव में लोगों को शांति का संदेश देती है? धार्मिक कट्टरपंथियों ने क्या कभी सही अर्थ में अपने धार्मिक ग्रंथ का अध्ययन भी किया है?
इतिहास गवाह है कि जिन लोगों ने कंधे से कंधा मिलाकर हमारे देश से ब्रिटिशों को खदेड़ दिया था, उन्हीं लोगों को कुछ स्वार्थी नेताओं ने सत्ता हथियाने के लिए धर्म के नाम पर बड़े आसानी से लड़ा दिया। जो लोग सदियों से एक देश में, एक छत के नीचे पे्रम से रहते आए, वही बँटकर दो दुश्मन देश में रहने वाले बन गए। तत्पश्चात हमारे समाज में हिन्दु-मुस्लिम, सिक्ख, इसाई आदि धर्म के नाम पर दंगे फसाद होते रहते हैं। लोग एक दूसरे के धार्मिक स्थलों पर बम फेंककर अपने सच्चा धर्मात्मा होने का सबूत देते आए हैं।
इतिहास गवाह है कि यदि हमारे समाज में सच्चा धर्मात्मा कोई है तो वे हैं हमारे कई नेता जो धर्म के लबादे में अशिक्षित ही नहीं पढे़-लिखे लोगों तक को गुमराह करके बढे़ आसानी से समाज में खून-खराबे का तांडव मचाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। हमारे समाज में ऐसे घिनौने उदाहरण हर दशक में देखने को मिले है। धर्म के पुजारी क्या तुम्हारे हाथ जरा भी नही। काँपे जब तुमने मासूम लोगों की जान ली? अबला नारी और मासूम बच्चों पर अत्याचार करके तुमने अपने किस ईश्वर, अल्लाह को प्रसन्न किया? धर्म के नाम पर दिल दहला देने वाली हिंसक घटनाओं को देखते हुए कभी-कभी मन में यह सवाल उठता है कि काश! समाज में कोई धर्म होता ही नहीं।
जब धर्म के नाम पर खून-खराबा करके पूरी तरह प्यास न बूझी तो प्रांत पे्रम के नाम पर गरीबों को मार पीटकर, खून बहाकर, उनकी मेहनत की रोज़ी रोटी छीनकर सच्चे मानुष होने का सबूत देने लगे। हे! मानुष जरा आप अपने दिल में झाँककर देखिए कि आप की यह हरकत क्या वाकई मानुष वाली हरकत है? यह कैसी प्रांतप्रियता, मानुषयता है, जिससे देश की एकता खंडित होकर चूर-चूर हो जाए! गरीबों को मार पीटकर आपने अपने नाम की छाप पूरे देशभर में खूब फैला दी। यदि नाम ही कमाना था तो महात्मा गांधी, डाॅ. भीमराव अंबेडकर जैसे कुछ कर्म कर जाते जिससे लोगों का कुछ भला हो पाता और लोग आपको सच्चे मानूष के नाम पर जिन्दगी भर याद करते और आपका नाम भी इतिहास के सुनहरे पन्नों में सदा चमकता रहता।
आज मुझे फिर किसी कबीरदरास का इंतजार है जो लोगों को यह बता सके कि केवल धार्मिक ग्रंथों के अंधानुकरण से कोई सच्चा धार्मिक नहीं हो जाता? यदि आप धर्मात्मा होने का ढिढोंड़ा पीटे तथा इंसानियत व पे्रम भाव को भूल जाए तो आप वास्तव में कभी भी ईश्वर-अल्लाह के दिल में जगह नहीं बना पाएँगे।
काश! लोग केवल एक धर्म,
इंसानियत धर्म को समझ पाते
काश! ईश्वर, अल्लाह, जिज़स,
वाहे गुरू सभी का कोई एक नाम होता।
काश मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारा चर्चादि
धार्मिक स्थलों के बजाए कोई
एक सद्भावना स्थल होता।
काश प्रांतप्रियता के ऊपर देशप्रियता ,
देशप्रियता के ऊपर विश्वप्रियता,
जातीयता के ऊपर मनुष्यता होती।
यदि ऐसा होता तो शायद......
हर समस्या का समाधान होता।
मुझे उस दिन का इंतज़ार है.......।
Tarannum Bano
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