Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भूकम्प का वो दिन

 

आया जब उस दिन तीव्र गति का भूकम्प,
मच गया पूरे शहर मे हद्कम्प.
न्यूज़ चैनल पर सब देख थी रही,
पर लगा कि मैं भी वही हूँ खडी.
लगा हुअ था सर्वत्र रोना और बिलखना,
दुख से दिलो को तो था ही दहकना.
कुछ जो बच गये ,थे बाहर ही खडे,
कितने तो थे अब भी मलबे मे दबे पडे.
देखती थी जब रोते बच्चे बेसहारा,
सोचती कौन देगा इनको सहारा?
देखती थी जब उनकी व्यथा और पीडा,
सोचती उठा लू उनकी सुरक्षा का बीडा.
फिर सोचा कि मैं तो नहीं सर्वशक्तिमान,
पर दे सकती उस्के कार्य मे अपना योगदान.
उठी फिर मन मे उनके प्रति ऐसी भावना,
कि डटकर करो इस विषम परिस्थिति का सामना.
प्रक्रुति का रौद्र रूप तो ज़रूर है आना,
पर तुम्हे है तनिक ना घबराना.
जब सालो किया उससे व्यवहार अनुचित,
अब भूलो को स्वीकारना ही है उचित.
हर रात के बाद सुबह ज़रूर है होती,
जगानी है तुम्हे स्वयम मे हिम्मत की ज्योति.
इस विकट परिस्थिति का समय भी टल जायेगा,
और स्रुष्टि का परिवर्तित सुखद रूप भी आयेगा.
यही कहती है मेरी हर धड्कन,
कि भेजून उनकेप्रति शक्ति के प्रकम्पन.
प्रक्रुति से भी है मेरी यही प्रर्थना,
कि हमारी गलतियो को माफ कर देना.

 

 

डॉ टिम्पल सुघंध.

 

 

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