काम करके जब मैं घर वापस आई,
तो देखा कि बाई बहुत सारा पनीर थी लाई.
आजकल सिर चडकर बोल रही महंगाई,
कहाँ से मैं इस बाई को उठा लाई.
आज कल के नौकर भी होते नखचडे,
दिखाते नखरे जो होते खर्चीले बडे.
हो रही थी मुझे बडी ही थकान,
पर लानी ही थी मुझे तो मुस्कान.
चम्पा क्योँ लाई हो तुम पनीर इतना?
मेमसाहब लाई उतना साहब ने बोला जितना.
अच्छा !आज आई है क्य इनकी शामत,
रोज़ तो होती है इनके औफिस मे दावत.
कैसे लिया मुझसे बिन पूछे यह फैसला,
आने दो इनको आज औफिस से वापस ज़रा.
कर ही रही थी मैं इनका इंतज़ार,
कि ये आकर बोले– गया था मैं बाज़ार.
थैली रखकर बोले– लो एक किलो पनीर,
बस, बेहने ही वाले थे मेरी आंखो से नीर.
क्यो है तुम्हे पनीर खाने का शौक बडा,
क्या पता नहीं ,इस महीने ओवर बजट हुआ पडा.
इधर एक किलो , उधर एक किलो,
अब तो मेरी तुम मेरी जान भी ले लो.
इतने बेपरवाह, बेहिसाब हो तुम यहाँ खडे,
पता नहीं कहाँ से मेरे गले हो पडे.
हम ही मिले थे तुम्हे सीधे सादे बकरे,
जो दिखाते हो मुझे नित्य नये नखरे ?
करते हो तुम ऐसा बेहिसाब खर्चा,
मा से बोलूंगी निकाले ससुराल मे मोर्चा.
लाउंगी मैं इस घर मे कयामत,
करूंगी तुम्हारी मा से तुम्हारी शिकायत.
निकल रहा था मुख से दिन की थकान का सैलाब,
देखा ही नहीं कि इनके हाथ मे थे कुछ गुलाब.
थक गई मैं जब बोल-बोल कर,
ये बोले थोडी हिम्मत जुटाकर.
दफ्तर के थोडे मेह्मान हैं आने वाले,
यदि कहो तो बाई कुछ पनीर पकौडे बना ले.
अगर एक-एक कप चाय भी बनवा लो ,
तो शायद मेरे प्रमोशन की कुछ बात हो.
देखा तो बई उठा रही थी सारी वार्तलाप का मज़ा,
आया तब मुझे तीव्र गति का गुस्सा.
दिया उसे ज़ोरदार कडा हुकम
पूछा मज़ा लेने का लेती हो तुम रकम?
बैठे रहे कि अब आये मेहमान
पर था ना उनका कहीन नमोनिशान.
धीमी आवाज़ मे ये दस बजे बोले-चलो सोने जाये
खाकर पनीर पकौडे और पीकर एक कप चाय.
डा. टिम्पल सुघंध
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