हो रहा था वक्ष मेँ दर्द बडा
डाक्टर के पास जाना ही पडा.
कतार मेँ बैठे बैठे लगती पीडा असहनीय
क्या डाक्टर समझेगा मेरी दशा दयनीय?
शब्दोँ की अनकही मेँ निहित थी मेरी दशा,
भाप गया वह मेरे ह्रुदय की आंतरिक व्यथा.
देकर प्रेम से भरे व्यवहार का उदाहरण,
कर दिया उसने मेरे मर्ज़ का निवारण.
शब्दोँ से अधिक शब्दोँ की अनकही है बलवान,
उसी मेँ निहित है हमारी असल पेह्चान.
शब्दोँ को तो तोडा मरोडा भी जाता
पर शब्दोँ की अनकही को कोइ छुपा ना पाता.
जान ले जो शब्दोँ की अनकही का भाव निहित
करता वह स्वयम व अन्य का भविष्य प्रज्वलित.
चाहिये इसके लिये बुद्धि स्वछ व बेदाग
तब जायेगा वह तीसरा नेत्र जाग.
तीसरा नेत्र ही समझेगा शब्दोँ की अनकही.
और खुशहाल होगी हमारी आने वाली पीढी.
Dr. Timple R. Sughandh
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