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Dr. Srimati Tara Singh
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‘मुक्तक-रुबाई-क़ता’ का प्रकाश-स्तम्भ: ‘सरस्वती सुमन’ का ‘मुरुक़ विशेषांक’

 

-समीक्षक: डॉ. वेद व्यथित
‘सरस्वती सुमन’ का ‘मुक्तक विशेषांक’ (अक्टूबर-दिसम्बर ’2011) अपने आप में विशेषांक तो है ही, साथ ही मुक्तक ,रुबाई व क़ता का एक ऐतिहासिक दस्तावेज भी है, जिसे विद्वान् व गंभीर आलोचक तथा सरस रचनाकार भाई जितेन्द्र ‘जौहर’ जी (अतिथि संपादक) ने ‘मुरुक़’ संज्ञा से अभिहित करके नवीन सर्जन किया है। यह ‘मुरुक़ विशेषांक’ अपने आपमें एक ‘अभूतपूर्व’ शोध-प्रबंध का आभास दे रहा है। श्री जौहर के इन तीनो विधाओं (मुक्तक-रुबाई-क़ता) पर विद्वत्तापूर्ण आलेख शोधार्थियों के लिए मार्गदर्शक का काम करेंगे। इतनी श्रम-साधना बड़े बूते की बात है। इस विशेषांक को देखकर यह भी कहा जा सकता है कि हिन्दी-उर्दू में शायद ही इन तीनों विधाओं पर इतनी सूक्ष्मता से कोई ‘विशेषांक’ प्रकाशित हुआ हो।

जिस साहित्यिक ‘सफ़र’ से जितेन्द्र जौहर लौटकर आये हैं, वास्तव में बहुत ही लम्बा ‘सफ़र’ है। लम्बा... इतना कि पूरे पृथ्वी ग्रह के लगभग कोने-कोने के भौगोलिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक क्षेत्र को अपने में समेटे हुए हैं। विभिन्न पादपों, उनमें पुष्पित विभिन्न आकर्षक रंगों के पुष्पों को इसमें सहेजने का अद्भुत कार्य उनकी अपनी सम्पादन-कला का सौष्ठव ही है।

कथ्य की दृष्टि से देखें तो भी यह सम्पादक के स्व:विवेकाधीन चयन के विशेषाधिकार के प्रतिरूप भी अद्भुत व अनुपम छवि प्रदान कर रहा है। पत्रिका में कहीं भी सस्तापन या अपरिपक्वता नहीं है, जो सम्पादक की सुसंस्कृत मानसिकता का परिचायक है। अधिकांश रचनाएँ जिनका अतिथि सम्पादक महोदय ने चयन किया है, अपने आपमें सांस्कृतिक-सामाजिक दायित्व-बोध के भार को पूर्णत: निर्वहन करने में सक्षम है। यह सब इसमें बड़े मनोयोग से परिश्रमपूर्वक सहेजा गया है। इसके लिए अनुक्रम से बहुत से नाम गिनाये जा सकते हैं लेकिन सूची बहुत बड़ी है- लगभग 300 कवि...08 देश...09 भाषाएँ। अत: पाठक स्वयं भी इन्हें चिह्नित करके रसानुभूति प्राप्त करेंगे ही।

इसके साथ-साथ सामग्री में ‘मुरुक़’ (मुक्तक-रुबाई-क़ता) की पृष्ठभूमि, उसका इतिहास और सृजनधर्मिता के निर्देश भी पत्रिका की सामग्री को संग्रहणीय बनाते हैं, जो शोधार्थियों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होगी। नये रचनाकारों के लिए निश्चित ही यह विशेषांक ‘मुक्तक-रुबाई-क़ता’ विधाओं का प्रकाश-स्तम्भ सिद्ध होगा। बहुत-से संकोची नये रचनाकार बिना किसी संकोच के इस के पृष्ठों को खोलकर स्वत: भी अपना मार्ग दर्शन करने में सक्षम हो पाएंगे।

सबसे बड़ी विशेषता है, इस विशेषांक का वृहत रूप। इतने रचनाकारों का समावेश जिसके कारण जहाँ एक ओर विषय की विविधता परिलक्षित हो रही है, वहीं विभिन्न देशों व देश के विभिन्न भागों की रचनाओं व रचनाकारों की एक साथ उपस्थिति भी अत्यन्त सुखद प्रतीत हो रही है; जैसे किसी विवाह-समारोह में सभी सम्बन्धी एक-साथ मिलकर आनन्द व प्रसन्नता का अनुभव करते हैं, वैसे ही यहाँ भी आनन्द की अनुभूति हो रही है।

इसके साथ-साथ हिंदी-भाषिक भूभाग की बोलियों में इन विधाओं की रचनाएँ पत्रिका में संकलित करके सम्पादक ने एक बड़ा काम किया है क्योंकि किसी भी भाषा में किसी भी विधा की रचनाएँ हो सकती हैं, जो कि अन्य भाषिक जनों से निकटता बढ़ाती हैं... और जो लोग सोचते हैं कि कोई विधा भाषा या बोली विशेष की ही विधा है, उनकी संकुचित सोच को जितेन्द्र ‘जौहर’ ने बहु-भाषिक ‘मुक्तक-रुबाई-क़ता’ प्रकाशित करके नकार दिया है क्योंकि रचनाधर्मिता व्यक्ति का गुण है, न कि भाषा या बोली का! भाषाएँ-बोलियाँ तो अभिव्यक्ति का माध्यम हैं। यदि मानवीयता किसी भी भाषा की रचनाओं में प्रकट होती है, तो निश्चित ही प्रशंसनीय व सराहनीय है। एक और विशेष बात जो इस विशिष्ट ‘विशेषांक’ में देखने को मिलती है कि आज समाज में दूसरों को सम्मान देने का संकट दिखाई दे रहा है, परन्तु पत्रिका में सांस्कृतिक मूल्यों को ‘प्रकाश स्तम्भवत’ मानते हुए स्वर्गीय रचनाकरों की रचनाओं को ससम्मान संग्रहीत करना सम्पादक की सहृदयता का परिचायक है, जो हम सबका अनिवार्य दायित्व भी है।

पत्रिका के प्रथम पृष्ठ से लेकर बीच-बीच में पृष्ठों पर रीना जी एवं स्वयं अतिथि संपादक जितेन्द्र ‘जौहर’ द्वारा सुंदर चित्रांकन भी पत्रिका को पुष्पायमान कर रहा है, जो अपने आकर्षण से पत्रिका को मनोहारी रूप प्रदान करने में समर्थ हुआ है... इसके लिए साधुवाद!

पत्रिका के अन्य स्थाई स्तम्भ सूचना-समाचार, चिट्ठी-पत्री आदि तो पत्रिका की स्थाई सामग्री है ही। इसके प्रधान सम्पादक महोदय की हस्तक्षेप-रहित निरपेक्षता भी पत्रिका को अद्भुत रूपाकार लेने में सहायक सिद्ध हुई है। इस सहृदयी कार्य हेतु प्रधान सम्पादक महोदय निश्चित साधुवाद के पात्र हैं। मैं पत्रिका-परिवार व अतिथि सम्पादक जितेन्द्र जौहर को बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ प्रदान करता हूँ।

पत्रिका: त्रैमा. ‘सरस्वती सुमन’
(मुक्तक विशेषांक, अक्तू.-दिस.-११)
कुल पृष्ठ सं.: 180 पृष्ठ, बड़ा आकार (लगभग 300 मुक्तककार)
मूल्य: रु 500/- (पाँच वर्षीय शुल्क)
प्रधान संपादक: डॉ. आनन्द सुमन सिंह (देहरादून)
अतिथि संपादक: जितेन्द्र ‘जौहर’ (सोनभद्र, उप्र)

-समीक्षक: डॉ. वेद व्यथित
अनुकम्पा -१५७७ सेक्टर -३
फरीदाबाद -१२१००४
०९८६८८४२६८८

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