मुस्लिम कवियों पर रामकाव्य का प्रभाव
रामकाव्य अपनी व्यापकता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। ईसाई फादर कामिल बुल्के जहाँ राम कथा पर कलम उठाते हैं वही मुसलमान कवियों, साहित्यकारों ने भी राम के चरित्र से प्रभावित होकर कलम चलाई है। उन्होंने केवल काव्य ही नहीं रचे वरन स्वयं राममय हो गये। वे राम में रहीम को देखते हैं और रहीम में राम को। राम उनके लिए एक लाख चैबीस हजार नबियों में एक हैं वे भी मानवीय कर्मों की पवित्रता को लेकर प्रकट हुए हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि इस्लाम के प्रति उनकी आस्था टूटी है वरन संचाई यह है कि नमाज और रोजों के प्रति भी उनकी आस्था द्रढ़ है।
1. गोस्वामी तुलसीदास से 250 वर्ष पूर्व अमीर खुसरों हुए। वे सूफी संत निजामुद्दीन ओलिमा के शिष्य थे। आप भारतीय संस्कृति में गले तक डूबे थे। आपने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘नुहसिफ्र’ में लिखा है -
‘तन, मन, धन का वह है मालिक
वासे निकसे जीको काम
वो हम सब का मालिक राम’
इस तरह मुस्लिम कवियत्री खातून सिद्दिकी लिखती है -
‘रोम-रोम में रमा हुआ जो राम है
निर्गुण भी है सगुण भी है वह अभिराम है
ह्यास मानवता का देख वह प्रगटित हुआ
उस विभूति को श्रद्धा सहित प्रणाम है
राम काव्य को श्रद्धा सहित नमन करने वालों की सूची लम्बी है और यह सिलसिला काफी पुराना है।
2. भक्ति काल में तुलसी के समकालीन कवि रहिम हुए हैं। वे तुलसी के अभिन्न मित्र थे। राम के आदर्श को नमन करते हुए वे लिखते हैं -
‘‘रामचरित मानस विमल, संतन जीवन प्राण।
हिन्दुआन को वेद सम, यवनहीं प्रकट कुरान।।‘‘
तुलसी के जीवन काल में ही राम के मर्यादा स्वरूप से प्रभावित होकर 1534 में ‘रामायण फैजी’ लिखी गयी जो रामचरित मानस का पहला फारसी अनुवाद है। इसके बाद 1589 में बादायूनी का ‘रामायण फारसी’ प्रसिद्ध हुई। इसके 34 वर्ष बाद 1623 में सादुल्लास मसीह की ‘दास्ताने रामोसीता’ फारसी भाषी जनता में लोकप्रिय हुई। इसकी कई प्रतिलिपियां जो हस्तलिखित है, आज ब्रिटिश म्यूजियम, इंडिया आॅफिस ग्रंथालय, एशी आर्टिक सोसायटी बंगाल और अलीगढ़ के ग्रंथालयों में सुरक्षित है। इसे नवल किशोर प्रेस लखनऊ ने 1899 में प्रकाशित किया था। 1
1860 में रामचरित मानस का उर्दू अनुवाद प्रकाशित हुआ। यह अनुवाद इतना लोकप्रिय हुआ है कि 8 वर्ष में इसके सोलह संस्करण प्रकाशित हो गये। इसके बाद पुनः इस गं्रथ का उर्दू अनुवाद ‘रामायण ए फरहत नाज हर्फ ब हर्फ‘ प्रकाशित हुआ। इसके भी सात संस्करण प्रकाशित हो चुके है। 1
इस सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न धर्म निरपेक्ष गणराज्य के देश में मुगलकाल से ही राम के प्रति मुस्लमानों के मन में गहरी श्रद्धा ने जन्म ले लिया था। कवि मुहम्मद फैयाजुद्दीन अहमद के इस उदगार को कैसे भुलाया जा सकता है-
‘यह लुफ्ते खास है, यह फैजे आम तुलसी का
ये खासो आम का प्यारा है, राम तुलसी का
यह राम नाम से है, उनके प्यार की महिमा
की सर पे रखती है, दुनिया कलाम तुलसी का 2
शायर मौलाना जफर अली खाँ ने अपनी शायरी में राम के सम्मान में बहुत कुछ लिखा है। वे मानते हैं कि दुनिया में यदि तहजीबे हुनर बाकी है तो वह राम, लक्ष्मण और सीता के कारण है-
‘नक्शे तहजी बे हुनर अब भी नुमायां है अगर
तो वह राम से हैं, लक्ष्मण से है, सीता से है।
मुसलमान कवियों ने रामकथा पर प्रचुरमात्रा में अपना साहित्यिक योगदान देकर उसकी मार्मिकता को प्रस्तुत किया है।
सर मोहम्मद इकबाल ने विश्व में भारत की महानता का आधार राम के व्यतित्व को माना है -
‘है राम के वजूद पे हिन्दुस्तां का नाज
अहले नजर समझते हैं, हम उनको इमामे हिन्द। 3
उत्तर प्रदेश में तनवीर प्रसिद्ध शायर हुए हैं। उन्होंने कई स्थानों पर राम के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है -
डुबती किश्ती को उसकी, हो गया साहिल नसीब
जिसने श्रद्धा से पुकारा, राम का शुभ नाम है।
मुस्लिम साहित्यकारों ने वर्तमान परिवेश में राम की सार्थकता पर कई गजलें लिखी है। वे मानते हैं कि आज मासुम सिसकती जनता का मार्गदर्शन राम ही कर सकते हैं। क्योंकि जीवन पथ पर धनधोर अंधकार छाया हुआ हैं। ऐसे में राम चरित का आदर्श ही उस सूर्य की तरह है जो इस अंधकार को निगल सकत है। - कमल अहमद लिखते हैं -
दानव हिंसक रूप बनाकर, घुम रहे हैं घर घर जाकर
मानवता को कॅपा दिया है, रावण ने हुंकार सुनाकर
मासूम सिसकती जनता के फिर, रक्षक बनकर आ जाओ
जीवन पथ पर घोर तिमिर है, राम पुनः तुत आ जाओं।
इस निराशा के बीच भी राम के रूप में आशा की एक किरण अभी भी शेष है। जैसा कि प्रसिद्ध शायर सागर निजामी लिखते हैं।
हिंदियों के दिल में बाकी है, मुहब्बत राम की।
मिट नहीं सकती कयामत तक, हुकूमत राम की।।
डा० . विशाल मनीष शर्मा
विभागाध्यक्ष हिन्दी
चेतना कला वरिष्ठ महाविद्यालय, औरंगाबाद
संदर्भ:-
1) डाॅ. बद्रीनारायण तिवारी- ‘रामकथा और मुस्लिम साहित्यकार’।
2) राम पटवा ‘हे राम के वजूद पे’, हिन्दोस्तां को नाज।
3) ‘संस्कृति के चार अध्ययाय’ प्रकरण 16-सर मो. इकबाल।
4) पं. रामप्रकाश त्रिपाठी- ‘भारतीय संस्कृति में मुस्लमानों का अवदान’।
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