मैं भी कविता लिखता हूँ--
और तुम भी.....
मेरी छपती है—
और तेरी भी ।
मैं अपनी कविता को
बार-बार पढ़ता हूँ—
और तेरी कविता को....
कभी देखता भी नहीं ।
मानता हूँ—
तेरी कविता
मेरी कविता से
बहुत अच्छी होगी ।
पर,
मेरी कविता, मेरी है...
चाहे जैसी भी हो, मेरी है...
मेरी अपनी लिखी हुई ।
मेरा अनुभव, मेरी पीड़ा
मेरी खुशी, मेरा दर्द
और न जाने क्या-क्या
सबकुछ मिला है उसमें ।
इसलिए,
मैं अपनी कविता से
प्रेम करता हूँ और सिर्फ
उसे ही पसन्द करता हूँ ।
चाहे वह, दूसरों के लिए
अचछी हो, या न हो
पर मेरे लिए तो बहुत अच्छी है
क्योंकि वह मेरी अपनी है ।।#।।
डॉ. अकेलाभाइ
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