Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नाक

 



“क्षमा कीजिए, आपको बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ी। क्या करें, मुख्यमंत्री जी का फोन था। उनके क्षेत्र में दहेज-हत्या के विरोध में आज एक जुलूस निकलने वाला है। मुझे वहाँ जाने को कहा है। हाँ..... तो बताइये, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ।“ नेता जी बैठक में पहुँचते ही आगन्तुक से पूछ रहे थे।
“नेता जी, कल आपका भाषण टी.वी पर बड़े ध्यानपूर्वक सुना और इसके अतिरिक्त में पत्र-पत्रिकाओं में दहेज-विरोधी आपके कई लेख पढ़ चुका हूँ। चार दिन पहले इसी विषय पर रेडियो द्वारा आपकी भेंटवार्ता भी सुनी थी।“ आगन्तुक ने कहा।
“यह तो बहुत अच्छी बात है। इसका मतलब आप मीडिया में काफी रूचि रखते हैं।“ नेता जी की बतीसी दीखी।
“अब बताइये, आप मुझसे क्या सहयोग चाहते हैं?“ नेता जी ने अपने विशाल हृदय का परिचय दिया।
“नेता जी, बात ऐसी है कि में एक साधारण नौकरी करने वाला सरकारी मुलाजिम हूँ। मेरी एक बेटी है, जो हिंदी और संस्कृत में एम.ए. है, किंतु दहेज के कारण में उसका विवाह करने में अपने को असर्थ पा रहा हूँ।“
“अच्छा तो आपको ऋण वगैरह चाहिए।“ नेता जी बीच में बोल पड़े।
“नहीं नेता जी, मुझे ऋण नहीं अपनी बेटी के लिए आपका बेटा चाहिए।“
“क्या बकते हैं? आपको अपनी औकात देखकर बात करनी चाहिए।“ नेता जी लील-पीले हो गए।
“सरकार, मुझे लगता है आप के बेटे के योग्य मेरी कन्या है। हमारी जाति, धर्म सभी मेल खाते हैं। फिर रूकावट क्या है महाराज? “ आगन्तुक गिड़गिड़ाया।
“विवाह बिरादरी में नहीं, बराबरी में होता है। निःसंदेह हम दहेज-विरोधी कई संस्थाओं के चेयरमैन हैं, लेकिन जो आदमी भूले हुए लोगों को मार्ग बताता है, इसका अर्थ यह नहीं कि वह उस मार्ग पर आगे-आगे चले भी। मैंने अपने पुत्र को विदेशी शिक्षा दी है। लाखों रूपये का नुकसान किया है। फिर मैं समाज से अलग नहीं हूँ। यदि मैंने अपने सुपुत्र का विवाह बिना दहेज आपकी कन्या से किया तो मेरी नाक कट जाएगी।“ नेता जी अभी और भाषण देने के मूड में थे तभी डाकिया एक लिफाफा दे गया। नेता जी ने लिफाफा खोलकर पढ़ा और उनका मुँह लटक गया।
आगन्तुक समझ गया था—नेता जी के सुपुत्र ने विदेश में रहकर उनकी नाक काट ली है।

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