Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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स्पर्श

 

माँमाँ, आज मुझे किसी ने छुआ है। मीनू अपनी माँ से प्रसन्न होकर कह रही थी।
तो इसमें नई बात कौन सी है ? मुझे तो हर दिन पाँच-दस लोग छूते हैं। माँ ने उपेक्षा की दृष्टि डाली।
नहीं माँ, इतने वर्षों के बाद मुझे लगा कि मेरे शरीर को किसी ने स्पर्श किया है। आज तक में कुँवारी थी। मीनू बड़ी गंभीरता से बोली।
इसका मतलब आज तक तुम अ पने ग्राहकों को ठगती आई हो ? माँ परेशान हो गई।
नहीं माँ, रोज़ आपके -द्वारा भेजे गए सभी ग्राहक मेरा इस्तमाल करते थे, तभी तो आपकी माँगी गई रक़म चुका कर जाते थे। उनके स्पर्श करने, छूने या मेरे शरीर को जख्मी करने से मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था। लेकिन आज माँ, वह भला आदमी जब मेरे पास आया तो काफ़ी देर तक बैठ कर बातें करता रहा। मैं उससे तुरंत निबटना चाहती थी, लेकिन उसने अपने बारे में मुझे बहुत कुछ बताया, फिर मेरे बारे में कुछ जानने की कोशिश की। मेरे दिल को उसने छु आ दूर बैठ कर। मैं समर्पित होना चाहती थी, पर उसने मना कर दिया। जानती हो माँ, उसने क्या कहा ? माँ के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना वह बोले जा रही थी उसने कहा, वह मुझे एक दिन डोली में बैठा कर अपने घर ले जाएगा।
ऐसा कहा उसने ? माँ आश्चर्यचकित थी।
हाँ माँ, वह मुझे ज़रूर ले जाएगा।
फिर क्या किया उसने ?कुछ नहीं माँ, सिर्फ़ बातें करता रहा और मेज़ पर आपके -द्वारा बताई गई फ़ीस रख कर चला गया।
मीनू की माँ कभी अपनी बेटी को निहारती तो कभी अपने घर के दीवारों को।

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