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बदलते परिदृश्य में हिंदी भाषा की स्वीकार्यता

 

बदलते परिदृश्य में हिंदी भाषा की स्वीकार्यता

सुशील शर्मा


भाषा भावों और विचारो की संवाहक होती है। भाषा का स्‍वरूप निरंतर बदलता रहता है और यह सभी भाषाओं के बारे में कहा जा सकता है। हम सभी इस तथ्‍य से अवगत हैं कि वर्तमान हिंदी का उद्भव संस्‍कृत भाषा से हुआ है और काल के अनुसार यह पालि, प्राकृत और अपभ्रंश का चोला बदलती हुयी वर्तमान स्‍वरूप को प्राप्‍त हुयी।

हिंदी एक आधुनिक भारत-आर्य भाषा है तथा यह भारतीय-यूरोपीय भाषाओं के परिवार से संबंधित भाषा है , और संस्कृत की  वंशज है, जो भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमाओं में आर्यन बसने वालों की बोली से उद्भूत है । समय की अवधि के साथ  विकास के विभिन्न चरणों से गुजरती हुई  शास्त्रीय संस्कृत से पाली-प्राकृत और अपभ्रंश  तक, हिंदी का उद्भव  10 वीं शताब्दी में पाया जाता है।  हिंदी को हिंदवी, हिंदुस्तान और खड़ी -बोली के रूप में भी जाना जाता था । देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी (जो विश्व की वर्तमान  लेखन प्रणाली के बीच सबसे वैज्ञानिक लेखन प्रणाली है) भारत गणराज्य की राष्ट्रीय आधिकारिक भाषा है और इसे दुनिया के सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा के रूप में स्थान दिया गया है। इसके अलावा, हिंदी बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान राज्य की राज्य भाषा भी है। दुनिया भर में लगभग छह सौ मिलियन लोग हिंदी को पहली या दूसरी भाषा के रूप में बोलते हैं। हिंदी का साहित्यिक इतिहास बारहवीं शताब्दी में पाया जाता है।


भारतीय -आर्यन  भाषाओं के विकास के तीन अलग-अलग चरणों को विद्वानों द्वारा सुझाया गया है। वे हैं: (ए) प्राचीन (2400 ईसा पूर्व - 500 ईसा पूर्व), (बी) मध्ययुगीन (500 ईसा पूर्व - 1100 ईस्वी) और (सी) आधुनिक (1100 -)। प्राचीन काल वैदिक और शास्त्रीय संस्कृत की अवधि है जिसके परिणामस्वरूप मध्यकालीन काल के दौरान पाली, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओँ  का विकास हुआ। दक्षिण एशिया की अधिकांश आधुनिक भारत-आर्य भाषाएं, जैसे हिंदी, बांग्ला, उडिया, गुजराती, नेपाली, मराठी, पंजाबी, आधुनिक 'काल' में विकसित हुईं।

आज हम जो हिंदी बोलते हैं वह ब्रज भाषा एवं अवधी भाषा से परिवर्तित होकर इस  स्वरुप में आई है। ब्रज भाषा का विस्तार अवधी भाषा से तुलनात्मक रूप से व्यापक है।बाद में ये भाषाएं अन्य पड़ोसी भाषाओं से प्रभावित हुईं । चूंकि, मुगलों, तैमूर  और अलेक्जेंडर ने भारत पर  हमले से भारत में नई  संस्कृतियों का आविर्भाव हुआ एवं, ब्रज भाषा पर उर्दू, अरब और फारसी भाषा का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा ।

अवधी, भाषा पर संस्कृत का बेहतर प्रभाव पड़ा, विश्वविद्यालयों और साहित्यिक समृद्ध क्षेत्रों के पास, जैसे, इलाहाबाद, वाराणसी, नालंदा, पाटिलपुत्र, गया आदि क्षेत्रों में प्रचलन के कारण अवधी भाषा  (18 वीं शताब्दी तक)  संस्कृत मूल को बनाए रखने में सक्षम रही।18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक, नवाब युग की स्थापना हुई थी। इसके बाद, उर्दू और फारसी भाषाओं ने अवधी को प्रभावित किया।

दुनिया का कोई भी देश भारत की भाषाई विविधता की बराबरी नहीं कर सकता भारत  में 'मातृभाषा' की संख्या,1652 है ,( जैसा कि 1961 की जनगणना में सूचीबद्ध है) भारत का संविधान किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं देता है। हालाँकि भारत गणराज्य की केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा हिंदी है। भारतीय संविधान  संविधान के अनुच्छेद 343, राजभाषा अधिनियम 1963 (यथा संशोधित 1967) के अनुसार आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं की सूची है, जिन्हें अनुसूचित भाषाओं के रूप में संदर्भित किया गया है।इन भाषों को  मान्यता, स्थिति और आधिकारिक प्रोत्साहन दिया गया है।

इसके अलावा, भारत सरकार ने 1500-2000 वर्षों के अपने लंबे इतिहास के कारण तमिल, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगू, मलयालम और ओडिया को शास्त्रीय भाषा का गौरव दिया है। सभी भारतीय भाषाएं इन 4 समूहों में से एक में आती हैं: भारत-आर्य, द्रविड़ियन, चीन-तिब्बती और अफ्रीका-एशियाटिक। अंडमान द्वीपों की विलुप्त और लुप्तप्राय भाषाओं में पांचवां परिवार है। हिंदी दुनिया की दूसरी सबसे बोली जाने वाली भाषा है (अंग्रेजी और स्पेनिश के बाद )डॉ. जयन्ती प्रसाद नौटियाल ने भाषा शोध अध्ययन २००५ के हवाले से लिखा है कि, विश्व में हिंदी जानने वालों की संख्या एक अरब दो करोड पच्चीस लाख दस हजार तीन सौ बावन (१, ०२, २५, १०,३५२) है जबकि चीनी बोलने वालों की संख्या केवल नब्बे करोड चार लाख छह हजार छह सौ चौदह (९०, ०४,०६,६१४) है। दुनिया की अन्य प्रमुख भाषाओं की तरह, हिंदी की देश भर में कई अलग-अलग बोली और भाषाएं हैं।ब्रज भाषा)(खड़ी बोली)हरियाणवी ,बुंदेली ,अवधी ( बाघेली) (क़न्नौजी)(छत्तीसगढ़ी) प्रमुख हैं।

सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा के बढ़ते इस्तेमाल पर भारत में बहुत विवाद हैं । ये कटु सत्य है कि भाषा ,भारत में एक विवादास्पद मुद्दा है,1963 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में  "देवनागरी लिपि में हिंदी" को भारत की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था। देवनागरी लिपि संभवतः विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि हैI यह जैसी लिखी जाती है वैसी ही पढी जाती हैI इसमें अंग्रेजी के GO  और TO  तथा PUT और  BUT जैसा उच्चारण वैषम्य नहीं हैI इसी प्रकार  CALM  और  BALM  जैसे शब्दों में L के साइलेंट होने जैसी कोई व्यवस्था नहीं हैI हिंदी में कैपिटल और स्माल लैटर का भी झंझट नहीं हैI उच्चारण और एक्सेंट की समस्या नहीं हैI 

वैश्विक स्तर पर वही भाषा टिक पाएगी जिसका शब्द-भंडार या शब्द-कोश बड़ा होI उस भाषा में औदात्य भी होना चाहिए ताकि वह अपने शब्द-भंडार को निरंतर बढ़ाता जाएI इस लिहाज से हिन्दी का यह सौभाग्य रहा है कि भारत में अनेक विदेशियों ने आकर शासन किया जिनमें तुर्क, मंगोल, अफगान, मुग़ल, फ्रांसीसी, पुर्तगीज और विशेकर अंग्रेज थेI इन शासकों ने अपनी भाषा में दरबार चलाया और देश का शासन कियाI फलस्वरूप हिन्दी भाषा शासकीय भाषाओँ से प्रभावित हुई और उसका शब्द भंडार जो संस्कृत के प्रभाव से पहले ही अत्यधिक समृद्ध था, वह और भी संपन्न होता गयाI


अंग्रेजी भारत में फैली हुई है और इसका व्यापक रूप से उपयोग ,भारत के अभिजात वर्ग, नौकरशाही और कंपनियों द्वारा किया जाता है। यह अपने लिखित रूप में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि अधिकांश दस्तावेजों के आधिकारिक संस्करण में अंग्रेजी का उपयोग किया जाता हैं। अधिकांश पैन-इंडियन लिखित संचार के साथ-साथ कई प्रमुख मीडिया आउटलेट अंग्रेजी का उपयोग करते हैं। हालांकि, बोली जाने वाले स्तर पर, अंग्रेजी बहुत कम प्रचलित है और भारतीय भाषाओं का अधिक व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, हिंदी अपने पूर्वोत्तर और दक्षिण को छोड़कर अधिकांश देश के लिए लिंगुआ फ़्रैंका के रूप में उपयोग में लाई जाती है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि लगभग 125 करोड़ भारतीयों या आबादी का लगभग 10 प्रतिशत अंग्रेजी बोल या समझा जाता है। इसका मतलब है कि लगभग 90 प्रतिशत भारतीय अंग्रेजी को समझते या बोलते नहीं हैं।वैश्विक स्तर पर भाषा को ज़मने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण एवं किसी भी भाषा की सम्प्रेषणीय क्षमता के लिए आवश्यक शर्त है कि उस भाषा की निज अभिव्यक्ति क्षमता कितनी है I यदि भाषा विश्व के सभी लोगों को अपनी बात समझाने में असमर्थ है या यूँ कहें  की उसमे संप्रेषणीयता का स्तर उच्च नहीं है तो वैश्विक धरातल पर भाषा के टिके रहने का कोई आधार और औचित्य नहीं है Iहिंदी में ज्ञान विज्ञान से संबंधित विषयों पर उच्चस्तरीय सामग्री की दरकार है। विगत कुछ वर्षों से इस दिशा में उचित प्रयास हो रहे हैं। अभी हाल ही में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा द्वारा हिंदी माध्यम में एम.बी.ए.का पाठ¬क्रम आरंभ किया गया। इसी तरह "इकोनामिक टाइम्स' तथा "बिजनेस स्टैंडर्ड' जैसे अखबार हिंदी में प्रकाशित होकर उसमें निहित संभावनाओं का उद्घोष कर रहे हैं। पिछले कई वर्षों में यह भी देखने में आया कि "स्टार न्यूज' जैसे चैनल जो अंग्रेजी में आरंभ हुए थे वे विशुद्ध बाजारीय दबाव के चलते पूर्णत: हिंदी चैनल में रूपांतरित हो गए। साथ ही, "ई.एस.पी.एन' तथा "स्टार स्पोर्ट्स' जैसे खेल चैनल भी हिंदी में कमेंट्री देने लगे हैं।



विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लाखों लोगों को एक नई भाषा सिखाने के लिए समय और संसाधनों का को नष्ट करना मूर्खता है । वास्तव में कितनी नौकरियों को अंग्रेजी के ज्ञान की आवश्यकता है? मेरे हिसाब से एकल इकाई के प्रतिशत से ज्यादा नहीं। भारत की वृद्धि अकेले सेवा उद्योग और कॉल सेंटर द्वारा संचालित नहीं की जा सकती है, भारतीयों का एक प्रतिशत ऐसे उद्योगों में काम करता होगा जो अपनी नौकरी के लिए कौशल के रूप में अंग्रेजी सीखते हैं। भारत के विकास के लिए यह जरुरी है कि जिस भाषा को  आबादी का एक बड़ा हिस्सा बोलता हो उसे उसी में शिक्षित किया जाये ताकि वह अधिक कुशल बन कर अपनी आजीविका कमा सके। बैंकिंग क्षेत्र में हिंदी के विकास की बात है तो वर्ष 2003-04 से लेकर अबतक (2007-08) की आर.बी.आय. की वार्षिक रिपोर्ट तथा दिसंबर 2007 में प्रकाशित `भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति एवम प्रगति संबंधी रिपोर्ट 2006-07 के हवाले से ज्ञात होता है कि - 1990 के दशक से ही विश्व बैंकिंग उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। परिचालन, भूमंडलीकरण, विनियमन और सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के सहारे यह क्षेत्र निरंतर प्रगति कर रहा है। हिंदी में तकनीकी प्रगति के साथ आय के नए तरीके भी सामने आ रहे है। हाल ही में हैदराबाद के गुगल ऑफिस में `गुगल ब्लागर्स' की एक मिटिंग हुई। इस मिटिंग से आये `टेक्नो स्पॉट डॉट नेट' के ओनर श्रीमान आशीष मेहतो एवम मानव मिश्र ने बताया कि सिर्फ गूगल के हिंदी ब्लागर्स की सालाना आय करोड़ों में होगी। सामान्य रूप से हर ब्लाग्स का ओनर जो महिने में 30 से 35 घंटे के लिए देखा जाता है वह 25 से 200 डालर तक कमायी कर सकता है। इसतरह स्पष्ट है कि तकनीकी विकास से हिंदी भाषा का विकास राष्ट्र का विकास और रोजगार के नए स्वरूपों का परिचायक है। भारत और हिंदी के विकास के लिए शासन और समाज को हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति मित्रवत होना होगा ताकि  जल्द से जल्द भारतीयों को यह एहसास हो कि आर्थिक और राजनीतिक सफलता के लिए अंग्रेजी आवश्यक नहीं है। वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार हिंदी, 2050 तक अधिकांश व्यावसायिक दुनिया पर हावी रहेगी, इसके बाद स्पेनिश, पुर्तगाली, अरबी और रूसी। यदि आप अपनी भाषा पाठ्यक्रम से अधिक पैसा प्राप्त करना चाहते हैं, तो ऊपर सूचीबद्ध भाषाओं में से एक का अध्ययन करना शायद एक सुरक्षित शर्त है।

केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों की  पहल के साथ , कई सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाएं हिंदी को एक लिंक भाषा के रूप में  प्रसार के लिए काम कर रहे हैं। हिंदी भाषी आबादी का बड़ा भाग  विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के लिए एक आकर्षक बाजार बनाता है, और इस बाजार का लाभ उठाने के लिए लोगों को भाषा से परिचित होने की जरुरत है। इस तरह की भूमिका के लिए किसी भी भारतीय भाषा से लगभग कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होने के कारण, देश के एक बड़े हिस्से पर एक लिंगुआ फ्रैंका के रूप में हिंदी की पहले से मौजूद स्थिति,  उन लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनती जा रही है  जो अपने क्षेत्र के बाहर रोजगार के अवसर तलाशते हैं।कई स्वैच्छिक एजेंसियां हिंदी के ज्ञान को फैलाने में व्यस्त हैं और फिल्मों और रेडियो एवं सोशल मीडिआ के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से उनके कार्य में सहायता मिलती है। हमें हिंदी भाषा के अस्‍तित्‍व को बनाये रखना है तो सबसे पहले सैकड़ों बोलियों जैसे – बुंदेलखंडी, भोजपुरी, गढ़वाली, अवधी, मागधी आदि की रक्षा करनी होगी। ऐसी क्षेत्रीय बोलियां ही हिंदी की प्राणवायु हैं। आज  हिंदी का ज्ञान गैर-हिंदी क्षेत्रों में फैल रहाहै और देश में सार्वभौमिक लिंगुआ फ़्रैंका के रूप में हिंदी के उद्भव का सूर्य चमक रहा है।

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