ये उन दिनों की बात है
डॉ सुशील शर्मा
ये उन दिनों की बात है
जब हम उड़ान पर थे
जब देखा करते थे स्वप्न किसी के
जब हम बदलते थे किताबें
और उनमें होते थे
गुलाब के फूलों से भरे
हमारे तुम्हारे प्रेम पत्र
जिनमें तुम उड़ेलती थीं
अपना प्यार चुरा लेती थीं नींदें।
ये उन दिनों की बात है
जब तुम हमें प्यार से देखती थीं
और हम मुस्कुरा कर
इतरा कर तुम्हे अपने
स्वप्नों में छोड़ जाया करते थे।
ये उन दिनों की बात हैं
जब किसी एकांत में
तुम्हारे लबलबाते होंठ
मेरा ही नाम लेते थे
हर समय तुम सोचती थी मुझे
चाहती थीं मुझे
मेरे एक इशारे पर तुम्हारा दिल
झूम उठता था शराबी की तरह।
ये उन दिनों की बात है
जब तुम किसी झोकें की तरह
समा जातीं थीं मेरी बाहों में
तुम्हारे हृदय का स्पंदन
मेरी छाती से गुजरकर
मेरे हृदय को चूमता था।
ये उन दिनों की बात है
जब हम मासूम हुआ करते थे
हमें नहीं मालूम था कि
प्रेम से भी अलग एक दुनिया है
जिसमें समाज हैं रिश्तें हैं
दूरियाँ हैं टूटते सपने हैं
मजबूरियाँ हैं,
बिखरते जज्बात है
ये उन दिनों की बात है।
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