मैं खड़ा हूँ
क्योंकि मैं बैठा हुआ था।
मैं चल रहा हूँ
इसी लिये कोई बैठा हुआ है।
मैं बैठा हूँ
इसी लिये कोई चल रहा है।
अनंत कोई नहीं बैठता
सभी अपनी अपनी यात्रा कर रहे हैं
और करते रहेंगे।
यह भी सच है कि जिसका शुरू होता हैं
उस का अंत भी होगा।
मैं नित्य के स्वरूप में एक अनित्य हूँ
इसी लिये यह जीवन कोई घटना नहीं है।
सब कुछ झूठ हैं की कथन से शुरू होता है
अपनी ही अंदर खूद का एक अंतहीन खोज की यात्रा।
किसी को क्या कहें
मैं यात्री अनित्य की नित्य चल रहा हूँ,
बस चल रहा हूँ
खुद के साथ चल रहा हूँ।
वास्तव में रोक के भी कोई नहीं रोका है
सब नित्य चल रहा हैं।
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