Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शारदा की साधना हो

 

मनहरण घनाक्षरी
शारदा की साधना हो, करके प्रणाम नित्य,
काव्यकर्म होता रहे, सदा-सदा ध्यान दें।
 भाव उपजें सहज, ढल-ढल शिल्पबद्ध,
लिखे लेखनी प्रवाही, लेखनी को मान दें।
ज्ञान की पिपासा में ही, हृदय रहे पिपासु,
प्रतिक्षण माता हमें, सत्य धर्म ज्ञान दें।
नित्य ही जिज्ञासा बढ़े, शब्दकोश हो प्रचुर,
सकारात्मकता रहे, व सस्वर गान दें!

माँ के प्रति सदैव विनयावनत,
 --इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'



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