धर्मचर्चा दोहे:
(शिखा का महत्त्व वैज्ञानिक आधार व शिखा/चोटी रखने से लाभ:)
मर्मस्थल सबसे अधिक, मान, दशम जो द्वार।
प्रकृति प्रदत्त कवच शिखा, उसका जानें यार।।1
शिखा सूर्य की शक्ति से, करे निरोगी अंग।
बुद्धिचक्र नीचे मिले, ब्रह्मरंध्र के संग।।2
करे सुषुम्ना का शिखा, उत्सर्जित जो तेज।
शिखा-बंध रोके उसे, रक्षित करे सहेज।।3
सहस्रार जो चक्र है, जाग्रत कर दे रक्ष।
मित्र शिखा आकार हो , गो-खुर के समकक्ष।।4
शिखा अग्नि का चिह्न है, इससे हो श्री प्राप्त।
तेज आयु बल बुद्धि दे, भय को करे समाप्त।।5
लघु व दीर्घ शंका अगर, मैथुन का हो झोल।
शवयात्रा में मित्रवर, शिखा दीजिये खोल।।6
शिखा धर्म फैशन नहीं, जानें समझें आर्य।
स्नान दान जप हवन में, शिखाबन्ध अनिवार्य।।7
शीश उत्तरी ध्रुव समझ, पाँव दक्षिणी मान।
ऊर्ध्व ऊर्जा को बहा, शिखा बढ़ाती ज्ञान।।8
अगर राहु हो नीच का, देख कुण्डली चित्र।
तिलक लगाकर नित्यप्रति, शिखा बाँधिये मित्र।।9
शिखा रखें सब वैष्णव, शैव न रखें लें जान।
केंद्र यही मष्तिष्क का, आत्मा का है स्थान।।10
शैशव-मुंडन तीर्थ या, जब हो अंतिम कर्म।
शीश मुँड़ाकर मित्रवर, शिखा धारना धर्म।।11
कर्मकांडी धर्मगुरु, रखता शिखा महान।
शिखा काटना व्यक्ति की, मृत्युदंड सम जान।12
मस्तक के भीतर जहाँ, संधिस्थल है जान।
अधिपतिमर्म कहें उसे, मस्तुलिंग भी मान।।13
ज्ञानेन्द्रिय कर्मेन्द्रिय से संबंधित मान।
संधिस्थल रक्षति सदा, शिखा कुचालक जान।।14
दिव्य चित्त तेजोमयी, माँ माया आ पास।
तेजवृद्धि करके सदा, करिये शिखा निवास।।15
--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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