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नारी छंद लावणी

 

इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'


21 फ़रवरी  · 


 


छंद लावणी
(1)
नारी से ही हम सब जन्मे, जननी तभी कहाती है।
पालन पोषण करती माँ जो, सबके मन को भाती है।
 पत्नी बुआ बहन बेटी सब, रूपों में वह पावन है।
नारी का हर रूप अनोखा, जग में वह मनभावन है।।
(2)
नारी में जो दुगनी मात्रा, इसीलिए नर आधा है।
वात्सल्य शुचि प्रेम स्नेह दे, नर को उसने साधा है।
स्नेह शक्ति से नितप्रति पाकर, अभिसिंचित हम रहते हैं।
बिना शक्ति के शिव भी शव सम, ऐसा ज्ञानी कहते हैं।
(3)
त्याग तपस्या ममता करुणा, नारी के आभूषण हैं।
इन्हीं गुणों से उसके जन्मे, सारे ही कुलभूषण हैं।
संस्कारित वह ही है करती, उसका हम सब मान रखें।
सुख दुख के प्रत्येक क्षणों में, उसका हम सब ध्यान रखें।।
(4)
नारी का अपमान करें मत, अति कोमल मन काया है।
अत्याचार करें मत उस पर, विधि ने उसे बनाया है।
नारी ही आधार प्रकृति का जगजननी यह नारी है।
प्रगतिशीलता उससे ही है, वह ही सब पर भारी है।।
(5)
मन में पावन भाव रहें यदि, नारी अमृत का सागर।
कुत्सित भाव अगर घर कर लें, 'नारी' होती विषगागर।
प्राप्ति कामना तड़पाती है, मतवाला ठोकर खाये।
त्याग समर्पण यदि हो मन में, 'नारी' साथी बन जाये।।
(6)
संरक्षण बेटी को देकर, स्नेह करें उल्लास भरें।
शस्त्र प्रशिक्षण उसको देकर, उसका सहज विकास करें।
कन्या दुर्गा रूप जगत में, शक्तिरूप ही 'नारी' है।
विकसित उसमें सद्गुण कर दें, असुरों पर वह भारी है।
 --इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

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