Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अश्कों की पुकार

 
अश्कों की पुकार

बारिश में अक्सर अश्कों को बहाते हैं,
लबों में दर्द भरे लफ़्ज़ों को छिपाते हैं।
मोहब्बत के बदले दर्द  दिया करते हैं,
क़ैद दिल मे करके आँखों में दिखाते हैं।।

बारिश ही महज़ दिल को हरा करती हैं,
सूखे दिल में भी मौसम बहार भरती हैं।
आँख बादल है घनघोर घटा छायी है,
अश्रु प्रवाह से गम की गुहार आयी है।।

आँख नम हो तो अक्सर सवाल उठता है
हमदर्दी से दूर अकेले  निकलना पड़ता है।
रोने का शौक नही, आँख कहाँ हँसने देती
तन्हाई का शौक नही,  यादें कहाँ जुड़ने देती।।

सावन जैसा ही तेरा प्यार महज़ लगता था,
आज बेवफ़ाई से पतझड़ की तरह लगता है।
खिज़र के माफ़िक अरमाँ ज़मीं पर बिखरे हैं
आँख आँसू लिए गुमनाम फिरा करते हैं।।

कवियत्री -फरहाना सय्यद

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