Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज दुनिया को बता दो

 
आज दुनिया को बता दो

आज दुनिया को बता दो मैं निराशा त्याग आया। 
(1)
अंग थीं अनिवार्य मेरा जो विफलता की कथाएँ, 
शीश चढ़कर बोलती थीं जो अधूरी कामनाएँ ;
भग्न वह सब स्वप्न जो करते व्यथित आठों प्रहर थे, 
मृत्यु को करते निमंत्रित जो हमारे शब्द स्वर थे-

उन सभी को बंद कर संदूक में, ताला लगा कर;
जिंदगी का, जागरण का आज नव संदेश लाया।

आज दुनिया को बता दो मैं निराशा त्याग आया। 
(2)
चूर जो थक कर हुए हैं जिंदगी के इस समर में, 
डूबती आती जिन्हें नौका नजर अपनी भँवर में ;
आज मेरा गीत यह, औदास्य को उनके समर्पित, 
मन न वह छोटा करें तिल भर न हों चिंतित, सशंकित। 

आज यदि उठ कर खड़ा मैं हो गया हूँ तो समझ लो, 
कौन है ऐसा जगत में फिर जिसे जाए उठाया।

आज दुनिया को बता दो मैं निराशा त्याग आया। 
(3)
हीनता का बोध होगा अब नहीं स्वीकार्य किंचित, 
निंद्य है लघुता, करो इसको समय रहते विसर्जित।
देश दुनिया के लिए करने बड़े हैं काम हमको, 
प्राप्त कर नर-योनि, करना अब कहाँ विश्राम हमको। 

सीख ले हमसे भविष्यत्, धर्म होगा पूर्ण तब ही, 
जन्म सार्थक है वही जो जाय परहित में लगाया। 

आज दुनिया को बता दो मैं निराशा त्याग आया। 
                     - - - - - - - - - - - - 
-गौरव शुक्ल 
मन्योरा 

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